मैच दर मैच सचिन का फ्लॉप शो…

0

फॉर्म सचिन के साथ नहीं है और आलोचना तीखी होती जा रही है ऐसे में सवाल है कि आखिर कब तक खेलेंगे सचिन और क्या टीम में बने रह कर सचिन सेलेक्टर्स के संयम का इम्तिहान नहीं ले रहे।मैच दर मैच सचिन के फ्लॉप शो का सिलसिला लंबा होता जा रहा है। साल 2011 में इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज़ से सचिन की रनों के लिए जूझने की शुरुआत हुई तो अब यह सिलसिला लगातार 6 टेस्ट सीरी… मैच दर मैच सचिन का फ्लॉप शो...फॉर्म सचिन के साथ नहीं है और आलोचना तीखी होती जा रही है ऐसे में सवाल है कि आखिर कब तक खेलेंगे सचिन और क्या टीम में बने रह कर सचिन सेलेक्टर्स के संयम का इम्तिहान नहीं ले रहे।मैच दर मैच सचिन के फ्लॉप शो का सिलसिला लंबा होता जा रहा है। साल 2011 में इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज़ से सचिन की रनों के लिए जूझने की शुरुआत हुई तो अब यह सिलसिला लगातार 6 टेस्ट सीरीज़ तक जा पहुंचा है। ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के दौरे पर पहले मास्टर फेल हुए और फिर घर पर कीवीज़,इंग्लैंड और अब कंगारूओं के खिलाफ भी बल्ला नहीं चला।कब तक सचिन?चाहे कप्तान धोनी हो, साथी खिलाड़ी या फिर बोर्ड, हर कोई सचिन को टीम में चाहता है और सचिन के टीम में होने से युवा खिलाड़ियों को फायदा होने की बात करता है। लेकिन सवाल है कि क्या सिर्फ मेंटर के तौर पर मास्टर की टीम में जगह बनती है? क्या सचिन की बजाए किसी युवा खिलाड़ी को खिलाने से टीम का ज्यादा फायदा नहीं होगा? वैसे भी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ़ सीरीज़ में सचिन से कही ज्यादा रन विजय, पुजारा और कोहली ने बनाए थे।क्या सचिन खुद लेंगे फैसला?मास्टर हमेशा कहते आए हैं कि वो जब तक क्रिकेट को एंजॉय करते रहेंगे वो खेलते रहेंगे लेकिन सवाल यह है कि जब मास्टर परफॉर्म नहीं कर रहे तो क्या उनकी टीम में जगह बनती है और क्यों सचिन के टीम में बने रहने का फैसला सचिन नहीं बल्कि सेलेक्टर्स करें? वैसे जब से पाटिल एंड कंपनी ने सेलेक्शन की कमान संभाली है तब से इस कमेटी ने कड़े फैसले लिए हैं। चाहे वो गंभीर सहवाग को टीम से बाहर करने का डिसीज़न हो या फिर सचिन को वनडे से संन्यास दिलाने का लेकिन क्या संदीप पाटिल सचिन को टेस्ट से भी संन्यास दिलवाने का फैसला ले पाऐंगे।जाहिर है सवाल काफी है लेकिन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज़ के बाद टीम इंडिया को 8 महीने तक कोई टेस्ट सीरीज़ नहीं खेलनी। ऐसे में संन्यास से जुडा कोई भी फैसला लेने का वक्त सचिन के पास भी होगा और सेलेक्टर्स के पास भी सोच-विचार करने का अच्छा खासा वक्त है।