तीन तलाक वैध है या नहीं, इस पर आज सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आ सकता है | कोर्ट यह तय करेगा कि तीन तलाक महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है या नहीं|मुसलमानों में प्रचलित एक बार में तीन तलाक की वैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगा।पिछले काफी समय से देशभर में तीन तलाक की प्रथा को लेकर बहस चल रही है| सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुबह करीब 10.30 बजे तक सुना सकता है |मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने तीन तलाक पर छह दिन तक मैराथन सुनवाई करके गत 18 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

12 से 18 मई के बीच सुनवाई
तीन तलाक मामले पर सर्वोच्च न्यायालय ने 12 मई से 18 मई के बीच पांच दिन सुनवाई की. हालांकि इससे पहले 16 अक्टूबर, 2015 को सर्वोच्च न्यायालय ने मामले में उन सभी जनहित याचिकाओं को अलग से सूचीबद्ध करने के लिए कहा था. इसमें मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का मुद्दा उठाया गया था.

सर्वोच्च न्यायालय ने ये कहा था
सर्वोच्च न्यायालय ने हालांकि शुरुआती सुनवाई के दौरान ही स्पष्ट कर दिया था कि वह ऐसी किसी चीज की वैधानिकता की जांच नहीं करेगा, जो इस्लाम की धार्मिक परंपराओं का अंतस्थ हिस्सा है और इसलिए बहु-विवाह प्रथा पर अदालत कुछ नहीं कहेगी. सुनवाई के दौरान मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक परामर्श जारी किया था. इसमें काजियों से कहा गया था कि वे निकाह कबूल करने से पहले महिलाओं को विकल्प दें कि क्या वह तीन तलाक नहीं चाहेंगी.

सर्वोच्च न्यायालय ने रखे हैं तीन प्रश्न
सर्वोच्च न्यायालय ने मामले से जुड़े सभी पक्षों के सामने तीन प्रश्न रखे हैं. ये तीनों प्रश्न हैं – क्या तीन तलाक इस्लाम का मूलभूत सिद्धांत है? क्या तीन तलाक को इस्लाम में पवित्र माना जाता है? और क्या तीन तलाक अनिवार्य रूप से लागू किया जाने वाला मूलभूत अधिकार है?

पर्सनल लॉ बोर्ड का ये था तर्क
अदालत के समक्ष पेश हलफनामा में पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा था कि देशभर के काजियों को निर्देश दिया गया है कि वे निकाह पढ़वाते वक्त निकाहनामा में इसे दर्ज करें कि दूल्हन ने एकसाथ तीन तलाक कह विवाह विच्छेद को स्वीकार नहीं किया है. मामले में अदालत के सहयोगी वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कहा, ‘धर्मशाों में जिसे गुनाह कहा गया हो, वह कानून के लिए अच्छा नहीं हो सकता. तीन तलाक मुस्लिम धर्म का अभिन्न हिस्सा तो नहीं ही है, बल्कि इसका धर्म से ही कोई लेना-देना नहीं है. इसके विपरीत इस्लाम में इसकी (तीन तलाक) की बुराई ही की गई है.’