राहुल गांधी का मोहनखेड़ा तीर्थ में आना किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए तो नहीं ?

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इमालवा – धार | कांग्रेस के युवराज राहुल गाँधी का कार्यक्रम प्रसिद्द जैन तीर्थ मोहनखेड़ा में ही क्यों रखा गया ? उनका यह प्रवास कही किसी धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा तो नहीं है ? यह वे सवाल है जो पिछले सप्ताह भर से लोगो के जेहन में उठ रहे है |

मोहनखेड़ा तीर्थ से जुड़े चमत्कार और वहां विराजित जैन संत ज्योतिषाचार्य ऋषभचन्द्र विजय जी महाराज का तंत्र – मंत्र और प्रभाव इस तरह की चर्चाओं को और भी हवा दे रहा है | कहा जा रहा है कि तीर्थ पर कार्यकर्ताओं की बैठक तो महज एक बहाना है, असल मकसद महाराज जी के सानिध्य में राहुल गाँधी एवं कांग्रेस की सफलता के लिए विशेष अनुष्ठान है |

कांग्रेस के मुख्य प्रचारक राहुल गांधी की पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मोहनखेड़ा तीर्थ में ही बैठक रखे जाने का उद्धेष्य क्या है ? इस सवाल के जवाब को भले ही पार्टी की व्यवस्था से जोड़ा जाए | लेकिन यात्रा का समय – तिथि और वार इस बारे में कुछ और ही चुगली कर रहे है |

बुधवार की सुबह राहुल गाँधी ने मोहनखेड़ा तीर्थ के मुलनायक भगवान् आदिनाथ के दर्शन – वंदन किये | इसके बाद उन्होंने दादा गुरुदेव राजेंद्रसुरिजी महाराज सा. के गुरु मंदिर में भी मत्था टेका और वहां विराजित राष्ट्रसंत ऋषभचन्द्र विजय जी से आशीर्वाद प्राप्त किया |

बताया जाता है कि दिन भर कार्यकर्ताओं से विचार विमर्श और पदाधिकारियों के साथ बैठकों के दौर से निपटने के बाद राहुल गांधी, रात्री में तीर्थ में विशेष पूजन में शामिल होंगे | बताया जाता है की पूजन के लिए बुधवार से गुरूवार की रात्री का चुनाव किया जाना और तिथि के हिसाब से भी पूनम का दिन रखा जाना अनुष्ठान के लिए आवश्यक है | क्षेत्र के जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार पूनम और गुरूवार का मोहनखेड़ा तीर्थ के हिसाब से बड़ा महत्त्व रहता है | इस दिन दर्शन करने के लिए देश भर से लोग यहाँ आते है |   

कहा जा रहा है की उत्तरप्रदेश और गुजरात के संपन्न चुनावों में स्टार प्रचारक रहने के बावजूद राहुल गांधी अपना कोई प्रभाव नहीं दिखा सके थे | मध्य प्रदेश में आगामी नवम्बर माह में विधानसभा के चुनाव होना है | प्रदेश में पिछले दो चुनावों से कांग्रेस पराजय झेल रही है | प्रदेश के तमाम वरिष्ठ कांग्रेस नेताओ की आपसी वर्चस्व की लड़ाई भी जग – जाहिर है | ऐसी स्थिति में प्रदेश में कांग्रेस को एक बार फिर से वैभव दिलाना बहुत टेढ़ी खीर कहा जा सकता है |

इस तरह के तमाम विपरीत हालातो के बाद क्या पूजन और अनुष्ठान से कांग्रेस को कुछ मदद मिलेगी ? इस सवाल का जवाब तो भविष्य में होने वाले चुनाव के परिणाम ही दे सकते है |