मध्य प्रदेश के सतना जिले के कटनी में मां शारदा का मंदिर स्थित है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जो भी रात को यहां रुकता है, उसकी मौत हो जाती है। जिसके कारण मंदिर को रात 2 से सुबह 5 बजे तक बंद रखा जाता है।
एक मान्यता के अनुसार प्रजापति दक्ष की पुत्री सती शिव से विवाह करना चाहती थी। लेकिन राजा को ये बात मंजूर नहीं थी। फिर भी सती ने भोलेनाथ से विवाह कर लिया। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया। शंकर जी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती इससे बहुत आहत हुईं। जब राजा दक्ष ने भोलेनाथ का अपमान किया तो माता सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। जब भगवान शिव को ज्ञात हुआ तोे उन्होंने यज्ञ कुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे। तब भगवान विष्णु ने ब्रह्मांड की रक्षा करने के लिए माता सती के पार्थिव देह को 52 भागों में विभाजित कर दिया। माना जाता है कि उस समय माता का हार यहां पर गिरा था। हालांकि सतना का मैहर शक्ति पीठ नहीं है परंतु भक्तों की आस्था के कारण यहां साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है।
क्षेत्रीय लोगों के अनुसार आल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वे भी शारदा माता के बड़े भक्त थे। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की तलाश की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को खुश किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। तभी से ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। यही नहीं, तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती किया करते थे।
कहा जाता है कि मां शारदा के मंदिर को रात में इसलिए बंद कर दिया जाता है क्योंकि इसी समय वे दोनों भाई मां के दर्शन करने आते हैं। दोनों भाई मां की पूजन के साथ ही उनका श्रृंगार भी करते हैं। इसलिए रात के समय यहां कोई नहीं रूकता। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जो हठपूर्वक यहां रुकने की कोशिश करता है, उसकी मौत हो जाती है। खास बात तो यह है कि ये पूरे भारत में अकेला मंदिर है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही काल भैरवी, भगवान हनुमान, देवी काली, देवी दुर्गा, गौरी-शंकर, शेष नाग, फूलमती माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।
त्रिकूट पर्वत पर मैहर देवी का मंदिर भू-तल से 600 फीट की ऊंचाई पर है। मंदिर तक जाने वाले मार्ग में 300 फीट तक की यात्रा गाड़ी से भी की जा सकती है। बताया जा रहा है कि मैहर देवी मां शारदा तक पहुंचने की यात्रा को 4 भागों में बांटा गया है। पहले भाग की यात्रा में 400 अस्सी सीढ़ियों को पार करना होता है। दूसरे भाग 228 सीढ़ियों का है। यहां पर आदिश्वरी माई का प्राचीन मंदिर है। यात्रा के तीसरे भाग में 147 सीढ़ियां हैं। चौथे और आखिरी भाग में 196 सीढ़ियां पार करनी होती हैं। तब मां शारदा का मंदिर आता है।