हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने न्यायालय के आदेश की जान-बूझकर अवहेलना के एक मामले में प्रतापगढ़ के एडीएम (तत्कालीन एसडीएम रानीगंज) जयशंकर त्रिपाठी को एक दिन (कोर्ट के उठने तक) के साधारण कारावास के साथ 5 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। अदालत ने कहा कि कोर्ट के उठने के बाद जुर्माने की रकम जमा किए जाने पर एडीएम को छोड़ दिया जाए।
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने शुक्रवार को यह आदेश उमापति की अवमानना याचिका पर दिया। इसमें रानीगंज के तत्कालीन एसडीएम जयशंकर त्रिपाठी को पक्षकार बनाया गया था। इस मामले में कोर्ट ने एक सितंबर 2011 को एक याचिका पर आदेश देकर एक अर्जी का साल भर में निपटारा करने को कहा था। जब साल भर में इस आदेश का पालन नहीं हुआ तो याची ने अवमानना याचिका दायर की।
इस मामले में कोर्ट ने त्रिपाठी पर आरोप तय करने के लिए शुक्रवार को तलब किया था। इसके तहत वह कोर्ट में पेश हुए। अदालत ने उनके खिलाफ अवमानना का आरोप तय कर दिया। एडीएम ने हलफनामे के जरिए अपनी सफाई पेश कर भविष्य में दुबारा ऐसी गलती न करने की बात कहते हुए क्षमा याचना की।
अदालत ने आदेश में कहा कि एडीएम ने जवाबी हलफनामे में चूंकि कहीं भी बिना शर्त माफी नहीं मांगी है, लिहाजा यह सशर्त माफी है। ऐसे में वह जान-बूझकर व इरादतन कोर्ट के एक सितंबर 2011 के आदेश की अवज्ञा करने का दोषी है। कोर्ट ने इसके लिए एडीएम को कोर्ट के उठने तक के समय (एक दिन) के साधारण कारावास के साथ 5 रुपये जुर्माने की सजा से दंडित किया।
तर्कसंगत समय में निपटाए जाएं मामले
‘लोग चाहते हैं कि उनके मामले तर्कसंगत समय में निपटाए जाने चाहिए। वक्त आ गया है कि जब अदालतों समेत न्यायिक व अर्द्धन्यायिक शक्तियों का इस्तेमाल करने वाले प्राधिकारियों को यह महसूस करना चाहिए कि हालात नियंत्रण से बाहर नहीं जाने चाहिए। मामले तर्कसंगत समय में निपटाए जाने चाहिए ताकि विवादों के सेटलमेंट के लिए लोग दूसरे रास्ते न अपनाएं। अगर ऐसे हालात पैदा होंगे तो लोग न्याय के संस्थान से भरोसा व उम्मीद खो देंगे।’