एक बार शेख चिल्ली को खबर मिली कि उनका भाई जो दूर एक गाँव में रहता था, बीमार पड़ गया है. इस बात की खबर मिलते ही मियां शेख चिल्ली नें अपनें भाई की खैरियत पूछने के लिए चिट्ठी लिखने की सोची.
अब उस जमाने में डाकखाने या कूरियर कंपनियां तो थी नही जो कुछ पैसे देकर चिट्ठी फ़टाफ़ट पहुँच जाती. उस जमाने में तो ज्यादातर चिट्ठियाँ हरकारों या मुसाफिरों के हाथों भिजवाई जाती थीं. शेख चिल्ली के गाँव में एक नाई था जो चिट्ठियाँ पहुंचाने का काम करता था. वे उसके पास चिट्ठी लेकर गए लेकिन वहाँ जाकर पता चला कि नाई खुद बीमार पड़ा हुआ है.
पडोसी ने सलाह दी कि नाई अगर बीमार है तो उसके बदले किसी और को भेजा जा सकता है. जो पैसे नाई को देते वो उसे दे देना. परन्तु शेखचिल्ली की किस्मत ऐसी खराब कि कोई न मिला जो उनकी चिट्ठी पहुंचा सकता.
हार कर शेख चिल्ली नें सोचा कि मै खुद ही जा कर भाई जान को चिट्ठी दे आता हूँ.
अगले ही दिन सुबह-सुबह मियां शेख चिल्ली अपने भाई के घर की ओर रवाना हो गए और शाम तक वह उसके घर पहुँच भी गए.
घर का दरवाजा खटखटाया तो उनके बीमार भाई बाहर आये. शेख चिल्ली ने उन्हें चिट्ठी पकड़ाई और उलटे पाँव अपने गाँव की ओर लौटने लगे.
भाई यह देखकर हैरान रह गए और पीछे-पीछे दौड़ते हुए आवाज लगाकर बोले – “तू इतनी जल्दी वापस क्यों जा रहा है, इतनी दूर से आया है तो मुझसे गले तो मिल ले, क्या मुझसे नाराज है ?”
शेख चिल्ली तेज़-तेज़ क़दमों से आगे बढ़ते हुए बोले – “नहीं भाईजान मैं आपसे नाराज बिलकुल नहीं हूँ पर अभी तो मैं सिर्फ आपकी खैर-खबर पूछने के लिए चिट्ठी पहुंचाने आया हूँ …. हमारे गाँव का नाई बीमार था न इसलिए !”
भाई ने समझाया कि अब तुम आ ही गए हो तो दो चार दिन रुक कर जाओ. इस बात पर मियां शेख चिल्ली का पारा चढ़ गया.
उन्होने मुंह टेढ़ा करते हुए कहा, “भाईजान आप बड़े अजीब इन्सान है. आप को यह बात समझ नहीं आती कि मै यहाँ नाई का फर्ज़ अदा करने आया हूँ. मुझे आप से मिलने आना होता तो मै खुद चला आता, नाई के बदले थोड़े ही आता ?”
भाई साहब वहीं गश खाकर गिर पड़े