एक बार विजयनगर के पड़ोसी राज्य ने विजयनगर पर आक्रमण कर दिया| इस युद्ध में विजय नगर के महाराज कृष्णदेव राय की विजय हुई| कृष्णदेव राय जब अपनी राजधानी पहुंचे तो तेलानीराम रास्ते में ही पीछे रह गए|
अगले दिन प्रत्येक दरबारी इस युद्ध को जीतने की खुशी में महाराज कृष्णदेव राय को अपनी तरफ से कुछ न कुछ उपहार दे रहे थे| इतने में तेनालीराम द्वारा भेजे गए एक आदमी ने राजा को नीम का पौधा भेंट किया तथा बताया कि यह उपहार आपके लिए तेनालीराम ने भेजा है|
यह सुनकर महाराज कृष्णदेव राय को क्रोध आ गया वह आग बबूला होकर बोले:-” तेनालीराम को गिरफ्तार करके हमारे सामने पेश किया जाए”|
यह आदेश सुनकर तेलानीराम से नफरत करने वालों के चेहरे पर रौनक आ गई और वे मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगे कि महाराज, तेलानीराम को कैद में डाल दें तो मजा आ जाएगा|
दूसरे दिन तेनालीराम को बंदी बनाकर महाराज के समक्ष पेश किया गया| दरबार में सन्नाटा छाया हुआ था| तभी कड़क आवाज में महाराज ने तेनालीराम से पूछा:- “यह कड़वे नीम के पौधे को उपहार में भेजने का तुम्हारा क्या मतलब है”? क्या हम तुम्हें कड़वे नीम की तरह कड़वे लगते हैं?
यह सुनकर तेनालीराम हैरान रह गए| वह समझ गया कि मेरे विरोधियों ने राजा को भड़काया है, परंतु तेलानी राम ने अपना धैर्य और विवेक नहीं खोया|
कुछ सोचकर तेनालीराम बोला:- “महाराज! मेरा कोई ऐसा इरादा नहीं था जैसा आप सोच रहे हैं| मैंने तो आपको नीम का पौधा यह सोचकर भिजवाया था कि जिस तरह नीम के पेड़ की आयु अन्य वृक्षों की अपेक्षा लंबी होती है उसी तरह आप भी दीर्घायु हो”|
जिस तरह नीम के पौधे की सुगंध से मक्खी मच्छर दूर भागते हैं, उसी प्रकार आपके शत्रु आपकी वीरता के आगे नतमस्तक हो जाएं|
नीम के पेड़ के नीचे बैठने से गर्मी में भी शीतलता मिलती है उसी प्रकार किस राज्य में भी चारों और तरक्की, कुशलता, खुशहाली और सुख शांति चारों ओर फैल जाए| यही सब कामना करते हुए मैंने आपके लिए उपहार स्वरूप यह नीम का पौधा भिजवाया था|
तेनालीराम की व्याख्या से महाराज खुश हो गए और तेनालीराम की प्रशंसा करने लगे| अंत में महाराज ने तेनालीराम को काफी इनाम देकर उसका स्वागत किया| यह सब देखकर तेनालीराम के विरोधियों के चेहरे पर मायूसी छा गई|