एकता में बल है – शिक्षाप्रद कथा

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एक वन में तीन विशालकाय और शक्तिशाली सांड रहते थे, जो आपस में गहरे मित्र थे| मित्रता इतनी गहरी थी कि एक अकेला सांड बिना अपने दो मित्रों के घास चरने नहीं जाता था| यही कारण था कि उनकी आपसी शक्ति तीन गुना अधिक थी| तीनों जंगल के स्वच्छंद वातावरण में घास खाकर काफी मोटे-तगड़े हो गए थे|जंगल में रहने वाले एक सिंह की नजर उन तीनों पर लगी हुई थी| उनके मोटे-तगड़े शरीर को देखकर उसके मुंह में पानी आ जाता था|

वह कई दिनों से उन्हें मार कर अपना भोजन बनाने की योजना बना रहा था| परंतु चूंकि वे तीनों सांड साथ रहते तथा चरते थे, इसलिए सिंह के लिए किसी एक को मार कर खा जाना संभव नहीं था| एक पर आक्रमण करने का मतलब था तीनों इतने बलवान थे कि तीनों से एक बार टकराने की हिम्मत सिंह में नहीं थी|

एक बार उसने कोशिश की थी| उसने उनमें से एक पर आक्रमण भी किया था, मगर उन तीनों ने मिलकर उस पर इतना जोरदर हमला कर दिया था कि सिंह घायल हो गया था तथा उसे ठीक होने में पूरे एक माह का समय लग गया था|

मगर इसके बावजूद भी सिंह तुला हुआ था कि वह उन तीनों सांडों में एक को खाकर ही रहेगा, परंतु उन तीनों के साथ रहते हुए तो यह संभव नहीं था| अत: उसने उन तीनों में फूट डालने के लिए एक योजना बनाई| उसने इधर-उधर अफवाहें फैलानी आरंभ कर दीं कि उन तीनों में एक सांड अपने साथियों को घास चरने से पहले पानी पीने के लिए कहता है ताकि वे कम घास खाएं| इस प्रकार वह खुद तो पेट भर कर घास खाता है, जबकि उसके दो मित्र बेचारे पानी से पेट भरते हैं|

सिंह की इन अफवाहों से वे तीनों सांड आपस में एक दूसरे को संदेह की दृष्टि से देखने लगे और शीघ्र ही उनमें आपस में शत्रुता हो गई| वे अलग-अलग स्थानों पर घास चरने लगे| बस, सिंह यही तो चाहता था| उसने एक-एक कर तीनों को मार गिराया और उन्हें खा गया|