ढोल की पोल – शिक्षाप्रद कथा

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एक बार भूख से दुःखी एक गीदड़ जंगल से निकलकर गांव की ओर आ गया| उसने सोचा गांव में कुछ न कुछ खाने की अवश्य मिल जाएगा| जंगल में रहकर तो भूखे मरने वाली बात है| गांव से बारह चौराहे पर थोड़ा-बहुत तो खाने को मिल गया, लेकिन उसकी भूख इतनी प्रबल थी कि उससे पेट नहीं भर सका, अब वह फिर गांव की ओर चल पड़ा| वहां पर बैठे कुत्तों ने जब एक गीदड़ को गांव की ओर आते देखा तो सबके सब उसकी ओर झपटे|

इतने सारे कुत्तों को अपने पर आक्रमण करने आते देखकर गीदड़ घबरा गया और सोचने लगा कि जाए तो जाए कहां? चारों ओर मौत नाचती दिखाई देने लगी| भूख की बात तो वह भूल गया…अब तो मौत से बचने की बात उसके सामने थी|

कुत्ते उसके पीछे भागे आ रहे थे| वह मौत से बचने के लिए अंधाधुंध भाग रहा था और छिपकर जान बचाने को कोई स्थान तलाश कर रहा था|

आगे एक रंगसाज का घर था, उसने कपड़े रंगने के लिए बहुत बड़े टब में नीला रंग तैयार कर रखा था ताकि सुबह उठकर कपड़े रंग सके| मौत से डरता गीदड़ इतना तेज भागा कि वह सीधा जाकर उस नीले रंग से भरे टब में जा गिरा| अब कुत्तों ने समझा कि गीदड़ भट्ठी में गिरकर मर गया है| इसलिए वे सब के सब पीछे मुड़ गए, कुत्तों को वापस जाते देखकर गीदड़ के मन को शांति मिल गई कि वह मौत के मुंह से बच गया है| उनके जाते ही वह टब में से निकला और रंगसाज के घर में खाने की तलाश करने लगा| उस समय जो भी उसे मिला, उसने खा लिया, पेट भरने के पश्चात् वह फिर वापस जंगल की ओर भाग छूटा|

नीले रंग के पानी में डूब कर वह पूरा नीला हो चुका था| इस हालत में उसे देखकर कोई कह नहीं सकता था कि यह कोई गीदड़ है|

जैसे ही वह जंगल में वापस आया तो जंगली जानवरों ने उसका गहरा नीला रंग देखकर बड़े आश्चर्य से उसकी ओर देखा, उनकी समझ में यह बात नहीं आई कि यह नीले रंग का विचित्र जानवर कोई गीदड़ भी हो सकता है|

पूरे जंगल में इस विचित्र जानवर को देखकर हलचल से मच गई थी| सब जानवर उससे डरने लगे और डर के मारे इधर-उधर भागने लगे|

गीदड़ समझ गया कि यह सब के सब उससे डर रहे हैं, अब तो उसमें एक नया जोश आ गया| उसे ऐसा लगा कि वह काफी शक्तिशाली हो गया है| तभी उसने भागते हुए जानवरों को आवाज दी – “भाइयो, हमसे डरो मत, हमें तो ब्रह्मा जी ने आप सबकी रक्षा के लिए भेजा है| आज से हम इस जंगल के राजा बनकर आप सब की रक्षा करेंगे, तुम हमारी प्रजा हो| आज से हम इस जंगल का राज चलाएंगे|” गीदड़ के कहने पर सब जानवर वापस आ गए| उन सबने मिलकर अपने नए राजा का सम्मान करते हुए उसे ऊंचे मंच पर बैठाया, वहीं पर उस गीदड़ ने अपने मंत्रीमंडल की घोषणा की|

शेर को सेनापति तथा महामंत्री बनाया गया, भेड़िये को रक्षामंत्री, हाथी को गृहमंत्री बनाकर इस छदम रूपधारी गीदड़ ने अपने आपको जंगल का राजा घोषित कर दिया| जो गीदड़ कल तक भूखा मरता था, आज उसकी सेवा में सारे जानवर तैयार खड़े थे, शेर और चीते उसके लिए हर रोज नए-नए शिकार लाते थे| जिसे वह बड़े मजे से खाता, छोटे-मोटे जानवर उसकी सेवा के लिए तैयार रहते|

कुछ ही दिनों में उस गीदड़ का जीवन ही बदल गया| अब वह खूब मोटा-ताजा हो गया| अब उसके जीवन में आनन्द ही आनन्द था| खूब खुला खाना, आराम ही नींद सोना| उसने तो कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि वह कभी जंगल का राजा भी बनेगा|

एक बार साथ के जंगल से गीदड़ों का एक बहुत बड़ा दल शोर मचाता हुआ उस जंगल में आ गया| सबके सब मस्त होकर नाच रहे थे, गा रहे थे|

नकली राजा गीदड़, जिसने ब्रह्मा जी का नाम लेकर इन सबको धोखा दिया था, अपने गीदड़ भाइयों को नाचता-गाता देखकर अपने तख्त से छलांग लगाकर नीचे उतर आया और अपने भाइयों में मिलकर उनकी भाषा में ही गाने और नाचने लगा|

दरबार में बैठे शेर, चीते, बाघ, भेड़िये और हाथी आदि को समझते देर नहीं लगी कि यह जानवर तो असल में गीदड़ है, जो हम सबको ब्रह्मा जी का नाम लेकर धोखा देकर हम पर राज करता रहा है| हम लोग आज तक इस नीच गीदड़ की जी-हुजूरी करते रहे और यह दुष्ट धोखेबाज गीदड़ हम पर हुक्म चलाता रहा| कितने शर्म की बात है हमारे लिए| उसी समय, क्रोध से भरा शेर क्रोध भरी दहाड़ मारकर उठा और उस धोखेबाज गीदड़ पर टूट पड़ा, गीदड़ ने अपनी जान बचाने की पूरी कोशिश की मगर शेर के आगे उसकी एक न चली| दूसरों को धोखा देने वाला वह छदम वेषधारी बहुरूपिया गीदड़ पल भर में ही अपनी जान गंवा बैठा| ढोल की पोल खुल गई|