जिला रतलाम अन्तर्गत् हब अन्तर्गत् सप्ताह 8 ’’लैंगिक संवेदनशीलता सप्ताह’’ का शुभारंभ का आयोजन जिला महिला एवं बाल विकास कार्यालय के मीटिंग हॉल में हुआ।
इस अवसर पर जिला कार्यक्रम अधिकारी श्री रजनीश सिन्हा ने कहा कि भारतीय संमाज प्रारंभिक समय से पुरूष प्रधान रहा है। बच्चे हमारे समाज की गतिविधियों से ही सीखते हैं। जब वह पढ़ते हैं कि मां घर में खाना बना रही है, सीता पानी भर रही है और रामू पतंग उड़ा रहा है तो उसे लगता है कि इसी प्रकार का लिंग आधारित कार्य विभाजन होता है। हमें इसे दूर करने का प्रयास करना है। सहायक संचालक श्रीमती विनीता लोढ़ा ने अपने उद्बोधन में कहा कि बालक-बालिका की समान परवरिश घरों से प्रारंभ की जाना चाहिए जिससे लिंग के आधार पर असमानता उत्पन्न ही न हो। नोडल अधिकारी सुश्री अंकिता पण्ड्या ने कहा कि समाज में बेटी को बेटा बोला जाता है, लैंगिक असमानता का भाव परिवार द्वारा शुरू किया जाता है जो कि आगे बढ़ता रहता है। सुश्री पण्डया द्वारा बताया गया कि कार्यालय में महिला की वेशभूषा से उसका आंकलन कई बार पुरूषों द्वारा किया जाता है जबकि किसी के चरित्र या स्वभाव के आंकलन का आधार वेशभूषा नहीं हो सकती।
सहायक कोषालय अधिकारी श्री कीर्ति जलधारी ने कहा कि घरों में वित्तीय निर्णय लेने में महिला की पूर्ण भागीदारी ली जानी चाहिए। आपने कहा कि बचत की आदत पुरूषों की तुलना में महिलाओं में अधिक होती है।शहरी विकास अभिकरण से नेहा कुआल द्वारा बताया गया कि लैगिक असामनता की शुरूआत घरों से होती है। उन्होंने बताया कि मेरे द्वारा मोटर साईकिल चलाई जाती है, मोटर साईकिल सिर्फ पुरूष ही नहीं चला सकते, महिला भी चला सकती है। मोटर साईकिल बनाने वाले कंपनी ने ऐसा कहीं नहीं लिखा कि मोटर साईकिल सिर्फ पुरूष चलाएगा, महिला नहीं। सुश्री नेहा द्वारा बताया गया कि लैंगिक असामनता की शुरूआत घर से होती है जब बच्चा जन्म लेता है तो हॉस्पीटल से लड़का या लड़की नहीं लिखा जाता है बल्कि ’’बेबी’’ लिखा जाता है, तदुपरांतघर में चर्चा होती है कि लड़के का जन्म हुआ या लड़की का जन्म हुआ।
आयोजन के दौरान कलेक्टर कार्यालय के द्वितीय तल के विभिन्न विभागों जैसे जिला कोषालय, श्रम विभाग, उद्यानिकी विभाग, आयुष विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग इत्यादि के अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित रहे। उपस्थित कर्मचारियों द्वारा हब अन्तर्गत् आयोजित गतिविधि को सराहा गया। साथ ही पुरूष कर्मचारियों द्वारा अपने अपने घरों में अपनी जीवनसंगीनी को सहयोग दिए जाने हेतु उपस्थित मंच को अवगत कराया। पूर्ण आयोजन में मुख्य रूप से ’’लैंगिक संवेदनशीलता की शुरूआत घर से मानी गई और सर्वसम्मत होकर घर से ही इसके समापन की अपेक्षा रखी गई।