अनुमान लगाइए कि आप दिन भर में कितने घंटे बैठे-बैठे गुजारते हैं?
हाल में किए गए एक सर्वे में पता चला है कि हम कंप्यूटर पर काम करते हुए या टीवी देखते हुए करीब 12 घंटे बैठे हुए बिता देते हैं।
यदि इसमें सोने के घंटों को भी मिला लें, तो हम 19 घंटे निष्क्रिय बिता देते हैं।
कुछ अध्ययनों के अनुसार ज्यादा घंटे बैठने वाले लोग ज्यादा सक्रिय लोगों से दो साल कम जीते हैं। बल्कि यदि आपको रोज कसरत की भी आदत हो तो भी इससे खास फर्क नहीं पड़ता।
बैठना नुकसानदेह क्यों?
विंस्टन चर्चिल, अर्नेस्ट हेमिंग्वे जैसे विश्वप्रसिद्ध लोग खड़े-खड़े ही लिखा करते थे।
आखिर बैठना इतना नुकसानदेह क्यों है? चलिए इसे समझने की कोशिश करते हैं।
हमारा शरीर शर्करा से एक खास तरीके से निपटता है। ज्यादा बैठना शरीर के उसी खास तरीके पर अपना असर डालता है।
जब हम कुछ खाते हैं, हमारा शरीर उसे ग्लूकोज में बदलता है, और फिर यह रक्त के जरिए दूसरी कोशिकाओं में प्रवाहित हो जाता है।
ग्लूकोज शरीर को जरूरी ऊर्जा देने के लिए अनिवार्य है। मगर यदि शरीर में इसका ऊंचा स्तर लगातार बना रहे तो हमारे लिए डायबिटीज और दिल के रोग जैसी बीमारियों का खतरा पैदा हो जाता है।
शरीर में मौजूद पेन्क्रियाज ग्लूकोज के आदर्श स्तर को बनाए रखने के लिए आवश्यक हारमोन इंसूलिन पैदा करता है। हम शारीरिक रूप से जितना सक्रिय होते हैं, पेन्क्रियाज यह प्रक्रिया उतनी कुशलापूर्वक संपन्न करता है।
प्रयोग और प्रतिक्रिया
हमने ये जानने की कोशिश की है कि इससे क्या फर्क पड़ता है जब दफ्तर में दिन भर बैठ कर काम करने वाले लोगों का एक समूह दिन के कुछ घंटे खड़े होकर बिताता है।
हालांकि काम करते वक्त खड़ा रहना कुछ अजीब सा दृश्य उत्पन्न करता है। विंस्टन चर्चिल, अर्नेस्ट हेमिंग्वे और बेंजामिन फ्रेंकलिन जैसे विश्वप्रसिद्ध लेखक खड़े-खड़े लिखा करते थे।
यूनिवर्सिटी ऑफ चेस्टर के डॉ जॉन बक्ले और उनकी टीम ने ऐसे 10 लोगों पर प्रयोग किया जो एस्टेट एजेंट थे। उन्होंने इन लोगों को एक हफ्ते तक रोज कम से कम तीन घंटे खड़े होकर काम करने को कहा।
इस प्रयोग में शामिल प्रतिभागियों की मिली जुली प्रतिक्रिया आई। एक ने कहा, “पता नहीं काम पूरा कैसे होगा। मगर मैं कोशिश जारी रखूंगा।”
दूसरे ने कहा, “मुझे लगता है इससे मेरे पैरों को नुकसान होगा। मुझे अच्छे जूते पहनने होंगे।”
किसी ने कहा,”ओह, मेरी पीठ! ” तो एक प्रतिभागी घबराता हुआ बोला, ” मुझे नहीं लगता कि मैं ज्यादा देर तक ये कर पाऊंगा।”
गंभीरता से अमल जरूरी
शोध कहता है कि तीन-चार घंटे खड़े होना 10 मैराथन दौड़ के बराबर है।
खड़े होना हमारे लिए ज्यादा सेहतमंद होता है, इसे साल 1950 के एक अध्ययन से भी समझा जा सकता है।
ये अध्ययन एक बस ड्राइवर (जो लगातार बैठा रहता है) और बस कंडक्टर (जो खड़ा रहता है) पर किया गया था। इस अध्ययन के नतीजे लांसेट पत्रिका में छपे। इसमें बताया गया था कि बस ड्राइवर को दिल की बीमारियों का बस कंडक्टर से लगभग दोगुना खतरा था।
तभी से ज्यादा देर तक बैठे रहने की स्थिति को रक्त ग्लूकोज, नियंत्रण की समस्या से जोड़ कर देखा जाने लगा।
ये जानने के बाद कि खड़े होना अच्छा है, हमने ये जानने की कोशिश की कि क्या लोग इसे अमल में लाने के प्रति भी गंभीर हैं। फिर हमने ब्रिटेन में पहली बार वालंटियरों पर प्रयोग किया।
ये वालंटियर अपनी बात पर कायम रहे। एक महिला जिन्हें गठिया था, उन्होंने कोशिश की और पाया कि इससे उन्हें फायदा हुआ।
10 मैराथन दौड़ जितना फायदेमंद
यूनिवर्सिटी ऑफ़ चेस्टर के डॉक्टर जॉन बक्ले और उनकी टीम जिन्होंने संबंधित अध्ययन किया।
चेस्टर शोधकर्ताओं ने पाया कि एक व्यक्ति के रक्त में शर्करा की बढ़ी मात्रा घट कर सामान्य हो गई जब वह अन्य दिनों की दिनचर्या के उलट खाना खाने के बाद खड़े रहे।
इसके अलावा यह भी पाया गया कि जब वे खड़े होते थे तो कैलोरी ज्यादा खर्च हुई। इसे हार्टरेट मॉनीटर से मापा गया।
जॉन बकले समझाते हैं, “अगर हम दिल की धड़कनों को देखें तो पाएंगे कि खड़े रहने के दौरान यह काफी ज्यादा हैं- हमारा दिल प्रति मिनट औसतन 10 बार ज्यादा धड़का, करीब 0।7 कैलोरी प्रति मिनट का फर्क आया।”
यदि आप पांच दिनों तक दिन में तीन घंटे भी खड़े होते हैं तो अंदाजन 750 कैलोरी खर्च होती है। एक साल में देखा जाए तो आप 30,000 अतिरिक्त कैलोरी, करीब 81बिलियन वसा से छुटकारा पाते हैं।
डॉ। बकले कहते हैं, “इसे यदि आप किसी शारीरिक क्रिया के रूप में समझना चाहें तो साल भर काम पर तीन से चार घंटे खड़े रहना एक साल में 10 मैराथन दौड़ने के बराबर होगा।”
वैसे हम काम करते हुए ज्यादा देर तक खड़े तो नहीं रह सकते मगर शोधकर्ताओं की सलाह है कि फिर भी थोड़ा बदलाव जैसे फोन पर बातें करते वक्त, ईमेल करते हुए, सहयोगी से चर्चा करते हुए भी हम खड़े रहें तो इससे हमारी सेहत पर काफी फर्क पड़ेगा।