इमालवा – रतलाम । प्रदेश की बहुचर्चित विधानसभा सीटों में से एक रतलाम शहर विधानसभा क्षेत्र का परिणाम क्या होगा ? इसको लेकर सभी प्रत्याशियों के अपने – अपने दावें है, लेकिन आंकड़ों एवं पिछले परिणामो पर तुलनात्मक नज़र डाले तो यह कहा जा सकता है कि मुकाबला बहुत ही नजदीकी रहेगा । हार – जीत का आंकड़ा तीन हज़ार से ज्यादा का नहीं माना जा रहा है ।
रतलाम विधानसभा क्षेत्र का मिज़ाज मोटे तौर पर कांग्रेस समर्थित रहने के बावजूद कांग्रेस के मतों का विभाजन यहाँ के परिणामो को भाजपा या निर्दलीय के पक्ष में करता रहा है । पिछले दो चुनावों में से वर्ष 2003 के चुनाव में कांग्रेस के बागी प्रत्याशी आर आर खान की चुनाव मैदान में मौजूदगी ने भाजपा की जीत का मार्ग बारीक अंतर से प्रशस्त किया था । इसी तरह वर्ष 2008 में कांग्रेस के मतों का बड़ा भारी ध्रुवीकरण निर्दलीय प्रत्याशी के पक्ष में हो जाने से चुनाव परिणाम ऐतिहासिक रूप से दर्ज हुआ था । वर्ष 2013 के लिए संपन्न मतदान में प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस और भाजपा के नए चेहरे मैदान में है, इसलिए राजनैतिक विश्लेषकों को पूर्वानुमान लगाने में काफी कठिनाई हो रही है । मालवा सहित जिले की अन्य सीटों के ट्रेंड के विपरीत शहर में मतदान का प्रतिशत कम रहने से प्रेक्षकों की उलझनें और भी बढ़ गई है । रतलाम का सट्टा बाज़ार भी एक अच्छा प्रेक्षक माना जाता रहा है लेकिन मतदान के पूर्व के और बाद के भावों में आए भारी अंतर ने सट्टा बाज़ार के विशेषज्ञों को भी उलझन में डाल दिया है ।
मालवा की राजधानी और नमकीन नगरी रतलाम में विधानसभा का चुनाव भारी कशमकश और जबर्दस्त उतार चढ़ाव से भरा रहता आया है । वर्ष 1977 में गठित इस सीट पर लगातार चार चुनाव तक भाजपा के प्रत्याशी हिम्मत कोठारी ने अपना परचम लहराया था । इन चार चुनावों में वर्ष 1977 का चुनाव जनता लहर का था। इसके बाद के दो चुनाव लहरविहीन रहे और इनमे हार-जीत का अंतर काफी कम रहा था । इसके बाद वर्ष 1990 में राम लहर ने मतों का साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण किया था ।तब हार-जीत का अंतर पहली बार पांच अंको 17 हज़ार 428 में पहुंचा था । वर्ष 1993 में प्रदेश में कांग्रेस ने इस सीट पर पहली बार जीत हांसिल की थी । तब प्रदेश में कांग्रेस को बहुमत मिला था और रतलाम शहर और रतलाम ग्रामीण सीट से योगी बंधुओं के जनता पार्टी की और से गलत बी फ़ार्म प्रस्तुत करने के कारण इन दोनों सीटों के लिए निर्वाचन आगे बढ़ा दिया गया था। सरकार बनने के बाद हुए इस चुनाव में पराजित होने के बाद अगले चुनाव वर्ष 1998 के चुनाव में भाजपा के हिम्मत कोठारी ने एक बार फिर से इस सीट पर कब्जा जमा लिया था । हालांकि तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ने दोबारा वापसी की थी ।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि वर्ष 1977 जनता लहर तथा वर्ष 1993 में राम लहर तथा विगत चुनाव की निर्दलीय लहर को छोड़ दिया जाए तो रतलाम शहर विधानसभा सीट पर सदैव कांटें का मुकाबला रहता आया है । इसी तरह की स्थिति वर्त्तमान चुनाव में भी मानी जा रही है । पिछली निर्दलीय लहर से हतप्रभ लोगों के लिए इस चुनाव में कोई भी अनुमान लगाना आसान नहीं रह गया है । इसलिए लोगो को आगामी आठ दिसंबर तक इन्तजार करना ही पडेगा ।
अभी चल रहे दावों पर एक नज़र
रतलाम शहर विधानसभा चुनाव में भाजपा जंहा जीत के प्रति आश्वस्त है तो कांग्रेस भी मुकाबला अपने पक्ष में मान रही है । इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला था और वर्त्तमान विधायक एवं निर्दलीय प्रत्याशी के समर्थक भी अपने समीकरणों से उनकी जीत की भविष्यवाणी कर रहे है।
इन दावों का अपना गणित है तो प्रेक्षकों की नज़र वर्ष 2003 एवं वर्ष 2008 के चुनाव परिणामो पर आधारित है । प्रेक्षको के तथ्य बताते है कि इन दोनों चुनावों में लगभग एक लाख चार हज़ार मतदाताओ ने विधिमान्य मतदान किया था ।
वर्ष 2003 में प्रदेश में भाजपा की लहर थी और प्रदेश कि तीन चौथाई सीटो पर भाजपा को जीत मिली थी । इसके बावजूद रतलाम शहर में भाजपा को मात्र 1951 मतों से विजय मिली थी । वह भी तब जब कांग्रेस के एक बागी एवं प्रभावी नेता आरआर खान भी निर्दलीय रूप से मैदान में थे । इस चुनाव में उन्होंने 7574 मत प्राप्त कर भाजपा की जीत का मार्ग प्रशस्त किया था । यानिकि कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशी को मिले मत को जोड़ा जाए तो भाजपा प्रत्याशी की जीत मुश्किल ही थी ।
वर्ष 2008 के चुनाव में कांग्रेस के परम्परागत मतदाता अपनी पार्टी से इस कदर नाराज़ हुए थे कि लगभग 90 प्रतिशत परम्परागत कांग्रेस से जुड़े वोटरों ने निर्दलीय के पक्ष में मतदान कर दिया था । तब भाजपा के भी असंतुष्ट निर्दलीय के पक्ष में खुलेरूप से मैदान में उतरे थे । यह दोनों मत निर्दलीय उम्मीदवार की प्रचंड जीत का कारण बन गए थे।
वर्ष 2013 के संपन्न मतदान के बारे में प्रेक्षकों का अनुमान है की कांग्रेस का परम्परागत मतदाता जो पिछले 2008 के चुनाव में उसके हाथों से छिडक़ गया था वह वापिस लोटकर कांग्रेस के पक्ष में चला आया है । दूसरी और भाजपा का वर्ष 2008 का असंतुष्ट मतदाता भी वापिस भाजपा के पक्ष में लोट आया है । भाजपा की मुसीबत यह है की उसका कट्टर समर्थक एक बड़ा मतदाता वर्ग इस चुनाव में भी नाराज़ रहा है । यह वर्ग निर्दलीय के स्थान पर कांग्रेस के पक्ष में गया और यह मतदाता ही चुनाव परिणाम की द्रष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है ।
यदि यह अनुमान सही माने जाए तो कहा जा सकता है की कांग्रेस उम्मीदवार सुखद स्थिति में है ।
लेकिन पिछले चुनावों के मुकाबले इस चुनाव में लगभग तीस हज़ार मतदाता नए है । इन मतदाताओ में से तीस प्रतिशत को कांग्रेस का परम्परागत मतदाता माना जा रहा है । बाकी बचे सत्तर प्रतिशत के बारे में भाजपा का दावा है कि इन नए मतदाताओ ने उसके पक्ष में मतदान किया है । भाजपा के दावे का आधार पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र भाई मोदी और शिवराज फेक्टर का अंडर करंट चलना है । भाजपा के इस दावे के विपरीत निर्दलीय प्रत्याशी के समर्थक इन वोटो पर अपने नेता का जादू मान रहे है । युवाम फेक्टर को आधार मानकर निर्दलीय इन नए मतदाताओ को अपने पक्ष में मानकर चल रहे है ।
इन तमाम अटकलों के कारण सटीक अनुमान लगाना सभी के लिए मुश्किल है, वैसे भी विगत चुनावों में रतलाम की जनता का जायकेदार स्वभाव सभी ने देख रखा है । इसलिए यदि कोई बड़ा उलटफेर भी हो जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं कही जा सकती है | क्योंकि यह रतलाम है और यहाँ सब कुछ सम्भव है ।