कमजोर शुरुआत के बाद पिछले एक सप्ताह में मानसून ने रफ्तार पकड़ी है। कृषि विभाग के मुताबिक, इससे खरीफ की बुआई में कुछ बढ़ोतरी होने की संभावना है। लेकिन यह सामान्य बुआई से करीब 20 फीसदी कम रहेगी। इसका असर सोयाबीन, मक्का, कपास और दालों की फसलों पर पड़ेगा।
कृषि विभाग के ताजे आंकड़ों के मुताबिक 345.6 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बुआई हुई है, जो सामान्य से 33 फीसदी कम है। खरीफ सीजन में बुआई के लिए 1060 लाख हेक्टेयर क्षेत्र है। पिछले साल 627.4 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। सोयाबीन, कपास, मक्का, अनाज और दालों की फसलों पर सबसे ज्यादा मार पड़ेगी।
सामान्य बुआई का लक्ष्य पाना मुश्किल
सिंह के मुताबिक, सूखे से निपटने के लिए हम तैयारी कर सकते हैं। लेकिन इसका असर बिलकुल भी ना हो ऐसा संभव नहीं है। इस साल सरकारी अनुमान का आंकड़ा फसलें नहीं छू पाएंगी। केंद्र सरकार ने खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 2015 के अंत तक 2610 लाख टन का रखा है। 2013-14 में उत्पादन रिकॉर्ड 2644 लाख टन रहा था। के.के सिंह के अनुसार अब जोरदार बारिश भले हो रही हो, लेकिन सूखे के आसार दिखने लगे हैं। इसके कारण सामान्य बुआई का लक्ष्य पाना मुश्किल है। मध्य और पूर्वी भारत में मानसून चार-पांच हफ्तों की देरी से पहुंचा जिससे बुआई पिछड़ गई है। 11 जुलाई तक खरीफ फसलों की बुआई 50 फीसदी कम हुई थी और बारिश सामान्य से 41 फीसदी दर्ज की गई। अच्छी बारिश होने से उसके एक हफ्ते बाद बुआई में अंतर घटकर 45 फीसदी हो गया। सिंह का मानना है कि अगर अगस्त में भी ज्यादा बारिश होती है तो भी बुआई की भरपाई नहीं हो पाएगा क्योंकि ज्यादातर फसलों की बुआई का समय खत्म हो गया है।
सोयाबीन का उत्पादन घटना तय
सोयाबीन की बुआई अभी भी हो रही है लेकिन देरी से बुआई होने पर इसकी उत्पादकता घट सकती है। 145 जुलाई से पहले बुआई के लिए सही समय होता है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश 15 जुलाई के बाद 15 फीसदी ज्यादा बुआई हुई है इसकी वजह से इन दोनो राज्यों में उत्पादन घट सकता है। मध्य भारत में 1.8-2.0 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है। जो कि अब घटकर 1.4-1.5 टन प्रति हेक्टेयर रह सकता है। जब भी सोयाबीन की बुआई देर से होती है तो फूल निकलने के समय कीट हमलों का डर बढ़ जाता है। मध्य प्रदेश सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। राज्य सरकार ने 30 जुलाई तक बुआई की सलाह दी है। 21 जुलाई तक प्रदेश में बुआई 45 फीसदी तक घट गया है। बारिश ने अच्छी रफ्तार पकड़ ली है जिसके चलते 70-80 फीसदी बुआई होने की संभावना है। एग्रीमेट ने किसानों को लघु अवधि की किस्मों के सोयाबीन की बुआई करने का कहा है। वहीं मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक के काफी किसान कैस्टर की फसल की ओर रुख कर रहे है।
क्या होगा कपास का
कुछ राज्यों के किसान कपास और मक्के की बुआई कर रहे है। लेकिन इन फसलों की बुआई और उत्पादन सामान्य से कम रह सकता है। पंजाब, हरियाणा, और राजस्थान सिंचित क्षेत्र होने की वजह से इन राज्यों में आमतौर पर कपास की बुआई मई की अंत तक होता है। महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में कपास की बुआई मानसून की शुरुआत के साथ होती है। जिसके चलते इन क्षेत्रों में अभी बुआई की जा सकती है। कपास की बुआई अगस्त की शुरुआत तक की जा सकती है लेकिन बुआई में देरी से उत्पादकता घट जाती है। इस कपास की बुआई भी 70-80 फीसदी ही हो पाएगी।
मानसून की मार दालों पर
आकस्मिक योजना की वजह से इस साल दालों के रकबे में बढ़ोतरी हो सकती है। बुआई बढ़ने के बावजूद उत्पादन में कमी आ सकती है। दालों की उत्पादकता घटकर 800-1500 किलो प्रति हेक्टेयर रह सकती है। दालों को ज्यादा पानी की जरुरत नहीं होती है। देश में अब तक दालों की बुआई 44.5 लाख हेक्टेयर में हुई है पिछले साल 73.3 लाख हेक्टेयर में हुई थी।
धान की फसल को लेकर चिंता बढ़ी
खरीफ की मुख्य फसल चावल का भविष्य भी बहुत उज्ज्वल नजर नहीं आ रहा है। जुलाई के अंत तक धान के लिए नर्सरी की जा सकती है और मध्य अगस्त तक रोपाई। गुरुवार तक देश में किसानों ने 165.7 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई की है। जो कि 17 फीसदी कम है। पिछले साल समान अवधि में 190.0 लाख हेक्टेयर में हुई थी। बारिश के ताजे आंकड़े किसानों के लिए उम्मीद लेकर आई है। 23 जुलाई को खत्म हफ्ते में सामान्य से 24 फीसदी कम बारिश हुई है।