इंदौर में ट्रेनी विमान क्रैश : डेढ़ साल में दो विमान हादसे

0

इंदौर। मप्र फ्लाइंग क्लब के छोटे विमानों में एक के बाद एक हादसे हो रहे हैं। 19 नवंबर (बुधवार) को हुए हादसे से पहले 12 जून 2013 को भी उड़ता हुआ प्रशिक्षु विमान मुंह के बल जा गिरा था। इस बार इसी तरह की घटना हुई। प्रशिक्षु विमान सेसना 152 वीटी ईयूई में हादसा हुआ और एक पायलट की मौत हो गई। फ्लाइंग क्लब के विमानों में इस तरह के हादसे होना बड़ा सवाल बन रहे हैं।

एक्सपर्ट्स इसे मेंटेनेंस और सुपरविजन की कमी बता रहे हैं, जबकि क्लब के पदाधिकारी सभी व्यवस्थाओं और जांच के पुख्ता होने की बात कर रहे हैं। आईनेक्स्ट की रिपोर्ट… मध्यप्रदेश फ्लाइंग क्लब के विमानों में करीब एक साल पांच महीने बाद फिर हादसा हुआ और एक पायलट की जान चली गई।

यह पहला मौका नहीं है जब फ्लाइंग क्लब के विमान में हादसा हुआ। क्लब के पदाधिकारी भले ही घटना के कारणों से जुड़ी कोई जानकारी नहीं होने की बात कर रहे हैं, लेकिन इस तरह के हादसों ने यहां के विमानों के मेंटेनेंस और व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि सुपरविजन की कमी और मेंटेनेंस के अभाव में इस तरह की घटनाएं होती हैं।

पुराने विमानों में ज्यादा खतरा!

क्लब के सदस्य, ट्रेनी पायलट्स और यहां से जुड़े लोग भले ही घटना के कारणों, कमियों और खामियों को लेकर कुछ नहीं बता रहे हो, लेकिन डेढ़ साल में दूसरी घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सूत्रों के मुताबिक क्लब के विमान काफी पुराने हो चुके हैं और विशेषज्ञ मानते हैं कि पुराने विमानों में दुर्घटना का खतरा बना रहता है। जिस विमान (सेसना 152 वीटी ईयूई) में हादसा हुआ है, वो भी संभवतः 1984 का बताया जा रहा है और 1993 में मप्र फ्लाइंग क्लब द्वारा मंगवाया गया था।

इसी तरह दूसरे विमान भी काफी पुराने हो चुके हैं। इस बात को लेकर भी संदेह है कि उम्र पूरी होने के बाद भी पुराने विमानों को ही सुधार-सुधार कर चलाया जा रहा है। हालांकि इस बारे में क्लब के सचिव मिलिंद महाजन का कहना है कि जो विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ है, उसका इंजन कुछ ही समय पहले बदला गया है।

इस इंजन की उम्र 2000 घंटे की थी, जबकि मौजूदा समय में इस इंजन के साथ विमान एक हजार घंटे ही चला था। लिहाजा इसे फिलहाल 1000 घंटा और उड़ाया जाना था, लेकिन बीच में ही हादसा हो गया। उनका यह भी कहना है कि ‘विमान के पुराने होने से हादसे का कोई संबंध नहीं है, क्योंकि समय-समय पर पार्ट्स बदलने और मेंटेनेंस का काम किया जाता है।’

सीपीएल से एक घंटा दूर

सूत्रों के मुताबिक अक्सर एक विमान में एक इंस्ट्रक्टर होता है, जबकि इस हादसे के दौरान विमान में सवार दोनों ही लोग पायलट थे। इस पर भी सवाल खड़ा हो रहा है कि दो पायलट एक साथ ट्रेनी विमान कैसे उड़ा रहे थे। इस पर पदाधिकारियों का कहना है कि एक इंस्ट्रक्टर थे जबकि दूसरा (अरशद) कमर्शियल लायसेंस होल्डर था। इंस्ट्रक्टर बनने के लिए कमर्शियल लायसेंस होल्डर को तय घंटों की उड़ान की जरूरत होती है। अरशद के पास कमर्शियल लायसेंस तो था, लेकिन महज एक घंटे की उड़ान के बाद वो इंस्ट्रक्टर बनने वाला था।

अगर कमी तो डीआईआर कैसे!

क्लब के पदाधिकारी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हर उड़ान से पहले डीआईआर यानी इंवेस्टिगेशन रिपोर्ट तैयार की जाती है। इसमें विमान के सभी पक्षों पर बारीकी से जांच की जाती है और किसी भी तरह की कमी पाई जाने पर उड़ान की परमिशन नहीं दी जाती है। मगर विशेषज्ञों का कहना है कि दबाव-प्रभाव वाले लोगों के हाथ में काम होने के कारण सबकुछ आसानी से मैनेज हो जाता है। सवाल यह है कि इस हादसे के पहले भी डीआईआर तैयार की गई होती या की गई है तो फिर यह हादसा कैसे हो गया। जाहिर है या तो डीआईआर में कमी रही या फिर विमान में। कारण की जानकारी के लिए जांच पूरी हो जाने का हवाला दिया जा रहा है।

72 घंटे बाद तालाब से निकल पाया था विमान

गौरतलब है कि पिछले साल भी इस तरह का हादसा हुआ था और जान बचाने के लिए पायलट ने क्लब के विमान को खेत में उतारना पड़ा था। यही नहीं, 9 दिसंबर 1988 को भी क्लब का एक पीला पुष्पक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे के बाद विमान बिलावली तालाब में जा गिरा था और इसमें सवार दोनों पायलट की मौत हो गई थी। बताया जा रहा है कि तालाब में गिरने के कारण विमान खोजा भी नहीं जा रहा था। तब नौसेना के जवानों ने कड़ी मेहनत से 72 घंटे के बाद इस विमान को खोजा था। लम्बे समय तक इस विमान के बिगड़ने और हादसे की जांच की गई थी। विमानों में छोटी गड़बड़ तो होती रही है, लेकिन इस तरह दो बार बड़े हादसे हुए हैं।

जो विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ, उसका इंजन कुछ समय पहले ही बदला गया था। उसकी क्षमता 2000 घंटे की उड़ान थी, जबकि वो अब तक एक हजार घंटे ही उड़ा था। विमान 1980 के दशक का था, लेकिन पुराना होने के बावजूद मेंटेनेंस समय पर किया जाता रहता है। क्लब की ओर से सभी औपचारिकताओं और जांचों को समय पर पूरा किया जाता है। विमानों का मेंटेनेंस, पार्ट्स बदलने का काम भी नियमित होता है। हमारे स्तर पर कोई भी लापरवाही या कमी नहीं रखी जाती। हादसे के पीछे क्या कारण रहे, यह तो एयर सेफ्टी और डीजीसीए की जांच के बाद ही साफ हो सकेगा।

-मिलिंद महाजन, सचिव, मप्र फ्लाइंग क्लब

इस तरह के हादसे सुपरविजन की कमी के कारण होते हैं। अगर समय पर मेंटेनेंस हो और जिम्मेदार अधिकारी ध्यान दें तो इस तरह के हादसों को टाला जा सकता है। ऐसे हादसे पहले भी हो चुके हैं, लेकिन सबक नहीं लिया गया। उज्जैन में हुआ हादसा इसका बड़ा उदाहरण है। हादसे के बाद सख्ती से जांच और कार्रवाई हो तो इस तरह युवा पायलट्स की जान नहीं जाएगी।

-घनश्याम पटेल, पूर्व संचालक, मप्र फ्लाइंग क्लब