सामना में लिखा गया, ‘मुसलमानों ने तलवार की धार पर धर्मांतरण किया. मिशनरी ने पैसा और सेवा के नाम पर गुड़ लगाकर गरीबों को ईसाई बनाया. ये दोनों सत्य नकारे नहीं जा सकते. कोई खुद धर्म बदलता है तो उसे कोई रोक नहीं सकता. लेकिन कोई सेवा के नाम पर धर्मांतरण करता है. उससे सेवा शब्द का अपमान होता है.’
सामना में लिखा गया, ‘मोहन भागवत मिशनरी के नाम पर चलने वाले मुखौटे को सामने लाए हैं. क्या गलती कर दी? मोहन भागवत ने एक कड़वा सत्य कहा है. भागवत ने जो कहा बिल्कुल सच कहा और कई सालों से सिर्फ देश में ही नहीं पूरी दुनिया में मिशनरी लोगों ने यह उपयोग शुरू कर रखा था.’
सामना के मुताबिक, ‘हिंदुत्ववादी संगठनों ने घर वापसी के नाम पर फंसाए गए ऐसे ही लोगों को फिर से हिंदू धर्म में परिवर्तन करने का प्रयास किया था. इसके चलते कई लोगों के पेट में दर्द भी शुरू हो गया था. लोगों ने हिंदुस्तान की धार्मिक भावना जैसे शब्दों के नाम पर निंदा की.’
इसमें लिखा गया, ‘जब दिल्ली के चर्च पर हमले हुए तब अमेरिका के प्रेसिडेंट से लेकर रोम के पोप सभी ने हिंदुस्तान को धार्मिक सद्भावना का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया. लेकिन उसी हिंदुस्तान में हिंदू धर्म का गला घोटने का काम मुसलमान और ईसाई करते हैं तब उसे धार्मिक स्वतंत्रता कहा जाता है.’