श्राद्ध की वही तिथि ली जाती है, जिस दिन व्यक्ति के पितरों ने अपने प्राण त्यागे हैं। जैसे किसी व्यक्ति की मृत्यु प्रतिपदा तिथि को हुई है तो उसका श्राद्ध हर वर्ष प्रतिपदा तिथि के दिन ही सम्पन्न किया जाएगा। जिन व्यक्तियों की मृत्यु की तिथि के बारे में पता नहीं होता है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जिनकी मृत्यु दुर्घटना, अस्त्र या शस्त्र, विष से मृत्यु, आत्महत्या, जलकर, डूबकर , गिरने से, अचानक मृत्यु होना (चाहे किसी भी रूप मे हुई हो) आदि का श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की अचानक मृत्यु हो गई हो और उनकी भी तिथि के बारे में पता नहीं है तब उनका श्राद्ध भी चतुर्दशी के दिन किया जाता है।

श्राद्ध के देवता : वसु, रूद्र तथा आदित्य को श्राद्ध के देवता माना गया है।

श्राद्ध के प्रकार : श्राद्ध तीन प्रकार के होते हैं।

1) नित्य श्राद्ध – श्राद्ध के दिनों में, मृतक के निधन की तिथि पर सम्पन्न किया जाता है।

2) नैमित्तिक श्राद्ध – किसी विशेष पारिवारिक उत्सव पर जब मृतक को याद किया जाता है।

3) काम्य श्राद्ध – यह श्राद्ध किसी विशेष मनौती के लिए कृतिका अथवा रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाता है।

श्राद्ध में कुश तथा तिल का महत्व

कुश को जल तथा सभी वनस्पतियों का सार माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार कुश तथा तिल दोनों ही विष्णु भगवान के शरीर से निकले हैं। गरूण पुराण के अनुसार ब्रह्मा कुश की जड़ मे रहते हैं। विष्णु भगवान कुश के मध्य भाग में रहते हैं। महेश अर्थात शिवजी कुश के अग्रभाग में रहते हैं। कुश का अग्रभाग देवताओं का माना जाता है। मध्य भाग मनुष्यों का माना जाता है। कुश का जड़ भाग पितरों का माना जाता है। तिल पितरों को प्रिय होता है। तिल दुष्टात्माओं को भी दूर भगाते हैं। ऎसी मान्यता है कि यदि बिना तिल बिखेरे श्राद्ध किया जाए तो दुष्टात्माएँ हवि को ग्रहण कर लेती हैं।

By parshv