चार महीने में जिला अस्पताल से रैफर गर्भवतियों की संख्या ढाई गुना हो गई है। अधिकतर को हाई बीपी और हाईपर थाइराइड के चलते रैफर किया गया। जिला अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है हाई बीपी में रक्त स्त्राव होने की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रसूति वार्ड में आईसीयू की सुविधा नहीं है। साथ ही हाईपर थाइराइड की स्थिति में गर्भवतियों को बेहोश करने पर झटके आने का खतरा रहता है। इस कारण गर्भवतियों को रैफर करना पड़ रहा है।
आसानी से कंट्रोल हो सकता है हाई बीपी
रतलाम मेडिकल कॉलेज की डीन डॉ.लक्ष्मी मारू ने बताया हाई बीपी को फिजिशियन की मदद से आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है। यह एेसी दिक्कत नहीं है कि गर्भवती को रैफर करना पड़े। आईसीयू की भी जरूरत नहीं है। हाईपर थाइराइड होने पर गर्भवती को कमर में इंजेक्शन लगाकर सीजर किया जाता है। इसके लिए पूरा बेहोश करने की जरूरत नहीं है। रतलाम जिला अस्पताल से दो साल से अधिकतर गर्भवतियों को मामूली दिक्कतों के चलते रैफर कर रहे हैं। अनावश्यक रैफर केस आने कम हो जाएं तो उन मरीजों को बेहतर उपचार मिल सकेगा, जिन्हें ज्याद जरूरत है।
मामले में सीएमएचओ को जांच के आदेश दिए हैं। रैफर मरीजों के कारण और एमवायएच के डॉक्टरों से बात कर रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए हैं। बगैर जरूरत मरीजों को रैफर करने वाले डॉक्टरों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। बी.चंद्रशेखर, कलेक्टर
डाटा एकत्र कर रहे
डाटा एकत्र किया जा रहा है। रैफर मरीजों से बात कर कारणों की समीक्षा कर रहे हैं। रिपोर्ट तैयार कर जल्द कलेक्टर को सौंपेगे। डॉ. वंदना खरे, सीएमएचओ
जांच की जाएगी
रैफर गर्भवतियों की बढ़ती संख्या के चलते जांच के निर्देश दिए हैं। डाटा एकत्र कर समीक्षा करेंगे। जांच शासन को भेजेंगे।डॉ.आनंद चंदेलकर, सीएस
रैफर
केस
23 मई
33 जून
47 जुलाई
48 सितंबर
35 अक्टूबर (शनिवार तक)
डॉ. लक्ष्मी मारू
ग्रामीण गांव जाने के बजाय अस्पताल में ही रुक गए। शाम 5 बजे वे इंजेक्शन लगवाने गए तो कर्मचारी ने उन्हें मना कर दिया। ग्रामीणों ने नाराजगी जताई तो उन्हें नामली जाने की सलाह दे दी। इस पर लोगों ने हंगामा कर दिया। अस्पताल चौकी पुलिस ने समझाने का प्रयास किया। ग्रामीण नहीं माने। इस पर सिविल सर्जन को सूचना दी। ग्रामीणों ने सिविल सर्जन काे फोन पर बताया, तब उन्होंने कर्मचारी को इंजेक्शन लगाने के निर्देश दिए। इसके बाद ग्रामीणों का आक्रोश शांत हुआ।
अस्पताल में इंजेक्शन खत्म हो गए थे
सिविल सर्जन डॉ. आनंद चंदेलकर ने कहा डॉग बाइट के इंजेक्शन खत्म हो गए थे। इस कारण मरीज आक्रोशित हो गए। इंजेक्शन खरीद कर लगवा दिए। मद्रास से इंजेक्शन आने में देर होने से यह स्थिति बनी।