चरण स्पर्श करना जहां नैतिक आचरण की शुद्धि का परिचायक है, वहीं यह एक प्रकार से योग भी है। इससे शरीर और मन आरोग्य बना रहता है। ‘अथर्ववेद’ में मानव जीवन की आचार संहिता का एक खंड ही है, जिसमें व्यक्ति की प्रात:कालीन प्राथमिक क्रिया के रूप में नमन को प्राथमिकता दी गई है।
वेद में ‘गुरु देवो भव, मातृ देवो भव, पित- देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव।’ आदि सूत्रों में सबको दंडवत प्रणाम व चरण स्पर्श करने को कहा गया है। इससे वरिष्ठजनों के आशीर्वाद, ऊर्जा और देव बल की प्राप्ति होती है।
वेदों में चरण स्पर्श को प्रणाम करने का विधान माना गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मानव शरीर में हाथ और पैर अत्यधिक संवेदनशील अंग हैं। हम किसी भी वस्त्र के कोमल, शीतल या गर्म आदि के गुण युक्त होने का अनुभव हाथों व पैरों के स्पर्श से प्राप्त कर लेते हैं। जब कोई अपनी दोनों हथेलियों से किसी विशिष्ट व्यक्ति का चरण स्पर्श करता है तो कॉस्मिक इलैक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स का एक चक्र उसके शरीर के अग्रभाग में घूमने लगता है, उससे शरीर के विकारों को नष्ट करने वाली ऊर्जा उत्पन्न होती है।
चरण स्पर्श करने वालों को नई स्फूर्ति के साथ नई प्रेरणा मिलती है और उसी शक्ति के कारण उसकी नकारात्मक प्रवृत्तियां समाप्त हो जाती हैं। नियमित चरण स्पर्श और दंडवत करने से हमें वज्रासन, भुजंगासन व सूर्य नमस्कार जैसे आसनों की मुद्राओं से गुजरना पड़ता है। इन क्रियाओं का मन, शरीर एवं स्वास्थ्य पर स्फूर्ति एवं शक्तिदायी प्रभाव पड़ता है।