उत्तर प्रदेश में देवरिया जिला मुख्यालय से बीस किलोमीटर दूर दूसरी काशी के नाम से प्रचलित रूद्रपुर में अष्टकोण में बने दुग्घेश्वर नाथ मंदिर में वैसे तो हमेशा ही श्रद्धालु आते हैं लेकिन सावन के महीने में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। सावन के महीने में शिव भक्तों द्वारा सरयू नदी से कांवड में जल चढाने की पुरातन परम्परा आज भी जारी है।
सावन के हर सोमवार को यहां भक्तों का तांता लगता है। सावन में पूरा मंदिर परिसर हर हर महादेव के जयकारों से गुंजायमान रहता है। जनश्रुतियों के अनुसार जहां मंदिर हैं, वहां लोग गाय-भैंस चराने आया करते थे। जहां शिवलिंग मौजूद है वहां एक गाय प्रतिदिन आती थी और उसके थन से दूध गिरना शुरू हो जाता था।
यह बात जब रूद्रपुर के नरेश तक पहुंची तो उन्होंनें पूरे इलाके की खुदाई करा दी। खुदाई में शिवलिंग दिखा। कहते है मजदूर जैसे-जैसे शिवलिंग को निकालने के लिये खुदाई करते, वैसे-वैसे शिवलिंग नीचे धंसता जाता। शिवलिंग तो नहीं निकला लेकिन वहां एक कुआं बन गया। राजा को स्वप्न में वहीं मंदिर बनाने का आदेश मिला।
स्वप्न में मिले आदेश के अनुसार रूद्रपुर नरेश ने काशी के पंडितों को बुलाकर शिवलिंग की विधिवत स्थापना कराई। यहां भक्तों को शिवलिंग स्पर्श के लिये चौदह सीढियां उतरनी होती हैं। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने भी अपनी भारत यात्रा में इस मंदिर का जिक्र किया है। मंदिर की दीवार पर हेन सांग की चीनी भाषा में लिखी टिप्पणी अंकित है।
ऐसे पड़ा मंदिर का नाम दुग्धेश्वर
किंवदंती के अनुसार गाय शिवलिंग पर दूध चढाया करती थी इसलिये मंदिर का नाम दुग्धेश्वर नाथ पडा। स्कन्ध पुराण में भी इस मंदिर का जिक्र है और इसे द्वादश लिंग की तरह महत्वपूर्ण बताया गया है। सावन मास, अधिक मास तथा शिवरात्रि पर यहां मेले का भी आयोजन होता है। यहां बिहार तथा पडोसी देश नेपाल से भी श्रद्धालु आते हैं। कहा जाता है कि सावन में यहां जल अर्पित करने से सभी कामना पूरी होती है।