नई दिल्ली। गांव-गांव तक ब्रॉडबैंड पहुंचाने के लिए अब मोदी सरकार निजी कंपनियों का हाथ थाम रही है। इसके लिए सरकार जल्द ही 2000 से ज्यादा ग्राम पंचायतों में ई-सेवाओं का ट्रायल शुरू करने जा रही है। इसमें निजी कंपनियों से लेकर सरकारी कंपनियों को भागीदारी का मौका मिलेगा। सरकार की साल 2016 तक देश के 2.5 लाख ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड नेटवर्क से कनेक्ट करना है।
इसके जरिए सरकार गांव हेल्थ केअर, एजुकेशन, बैंकिंग, नगर पंचायतों पर मिलने वाली सेवाओं को इंटरनेट से जोड़कर हर आदमी तक पहुंचाना चाहती है। लेकिन अपने लक्ष्य से पीछे चल रहे नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क को अब केवल सरकार के भरोसा पूरा करना संभव नहीं है, जिसे देखते हुए सरकार अब निजी क्षेत्र का भी साथ ले रही है।
प्रोजेक्ट से क्या होगा फायदा
सरकार नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क प्रोजेक्ट के जरिए हर ग्राम पंचायत में न्यूनतम 100 एमबीपीएस स्पीड से ब्रॉडबैंड सेवाएं पहुंचाना चाहती है, जिसके जरिए ई-सेवाओं का विस्तार तेजी से किया जा सकेगा। इस कदम से मनरेगा से जुड़ी सेवाओं से लेकर, लैंड रिकार्ड, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और ई-कॉमर्स सेवाओं का विस्तार तेजी से ग्रामीण इलाकों तक हो सकेगा।
दो हजार ग्राम पंचायतों में शुरू होगा ट्रॉयल
नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क को लागू कर रही कंपनी भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड (बीबीएनएल) ने जून में 2000 से ज्यादा ग्राम पंचायतों में ई-सेवाओं का ट्रायल शुरू करने के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट मांगे है। इसके तहत कंपनियां ग्राम पंचायतों में सेवाएं पहुंचाने में माध्यम का काम करेगी। सरकार द्वारा यह ट्रॉयल 6 महीने के लिए नौ राज्यों में शुरू किया जाएगा।
पहला ही टारगेट फेल
टेलीकॉम नियामक ट्राई की ब्रॉडबैंड नेटवर्क रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2015 तक केवल 20 हजार ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड नेटवर्क से जोड़ा गया है। जबकि सरकार का लक्ष्य 50 हजार ग्राम पंचायतों को जोड़ना था। रिपोर्ट के अनुसार प्रोजेक्ट धीमा होने की कई प्रमुख वजहें हैं, जिसकी वजह से लागत में भी दोगुना बढ़ोतरी हुई है।
क्यों हो रही है देरी
ट्राई के अनुसार प्रोजेक्ट को एक्जीक्यूट करने में कई सारी खामियां हैं। उपकऱण की सप्लाई में देरी के कारण प्रोजक्ट अटका है। इसके अलावा योजना की डिजाइनिंग में भी कई स्तर पर खामियां है। मसलन जिले के आधार पर प्लान नहीं तैयार किया गया। जिसके कारण ग्राम पंचायतों के साथ कनेक्टिविटी में दिक्कत आई है। योजना को लागू करने की जिम्मेदारी बीएसएनएल, रेलटेल और पॉवरग्रिड के पास है। लेकिन प्रोजेक्ट की डिजाइनिंग में ही जवाबदेही की कमी है। साथ ही तीनों एजेंसियों के बीच सामंजस्य न होने पर भी सवाल ट्राई ने रिपोर्ट में उठाए हैं। इसके अलावा जिन राज्यों में यह काम हो रहा उनसे भी प्रोजेक्ट के लिए सामंजस्य नहीं बन पाया है।
दिल्ली मेट्रो जैसा हो मैनेजमेंट
रिपोर्ट के अनुसार नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क लिमिटेड को लागू करने के लिए बनाई गई कंपनी भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड को प्रोफेशनल तरीके से चलाने की जरूरत है। इसके लिए कंपनी में प्रोफेशनल्स को शामिल किया जाय। जैसे कि दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन को चलाया जा रहा है। कई चरणों के आधार पर फैसले लेने की प्रक्रिया को खत्म करने की बात रिपोर्ट में कही गई है। इसके अलावा केंद्र और राज्य के साथ मिलकर पीपीपी मॉडल को अपनाने का भी सुझाव दिया है। साथ ही अटकी टेंडर प्रक्रिया को जल्द पूरा करने की भी सिफारिश की गई है।