नई दिल्ली। सरकार वित्तीय क्षेत्र में बड़े सुधार की तैयारी कर रही है। गुरुवार को सरकार ने इंडियन फाइनेंशियल कोड (आईएफसी) का संशोधित मसौदा जारी किया। अगर यह लागू हो जाता है तो आरबीआई गवर्नर के अधिकार काफी कम जाएंगे। इसमें बहुमत के आधार पर प्रमुख पॉलिसी रेट्स तय करने का प्रस्ताव है, जिससे इस मामले में गवर्नर का वीटो खत्म हो जाएगा।
रेट तय करते समय ध्यान में रखना होगा महंगाई का लक्ष्य
आईएफसी के संशोधित मसौदे के मुताबिक आरबीआई को सरकार द्वारा केंद्रीय बैंक से परामर्श के बाद हर तीन साल में तय किए जाने वाले सालाना खुदरा महंगाई के लक्ष्य को ध्यान में रखना होगा। वित्त मंत्रालय ने अपने मसौदे में कहा, ‘केंद्र सरकार द्वारा तीन साल में आरबीआई के साथ परामर्श से हर वित्त वर्ष के लिए महंगाई लक्ष्य को कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स के आधार पर तय किया जाएगा।’ इसके मसौदे पर मंत्रालय ने 8 अगस्त तक टिप्पणियां आमंत्रित की हैं।
मौद्रिक नीति समिति का करना होगा गठन
मसौदे में कहा गया कि आरबीआई को ‘बहुमत के आधार पर पॉलिसी रेट तय करने के लिए मौद्रिक नीति समिति का गठन करना चाहिए, जो महंगाई लक्ष्य के लिए जरूरी हो।’ मसौदे में ‘आरबीआई चेयरपर्सन’ की बात की गई है और ‘आरबीआई गवर्नर’ की नहीं। फिलहाल आरबीआई गवर्नर एक टेक्निकल एडवाइजरी कमिटी के साथ परामर्श करता है, लेकिन मौद्रिक नीति की घोषणा करते समय उसके लिए इस पर बनी आम राय को अपनाना जरूरी नहीं होता है।
बहुमत के आधार पर रेट्स तय करने का प्रस्ताव
आईएफसी के मसौदे के मुताबिक कमिटी की अगुआई आरबीआई चेयरपर्सन द्वारा की जाएगी। जबकि चेयरपर्सन का कोई पद फिलहाल नहीं है और गवर्नर ही प्रमुख होते हैं। पैनल के अन्य सदस्यों में आरबीआई बोर्ड का एक कार्यकारी सदस्य, आरबीआई का एक कर्मचारी और केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त चार लोग शामिल होंगे। मसौदे के मुताबिक हर दो साल में इस पैनल की बैठक जरूर होनी चाहिए। मसौदे में कहा गया, ‘मौद्रिक नीति समिति की एक बैठक में फैसला बहुमत और वोटिंग के आधार पर होना चाहिए।’