नई दिल्ली। भारत में इमर्जेंसी सेवाएं जल्द ही एक नंबर के जरिए उपलब्ध होंगी। पुलिस, फायर और ऐंबुलेंस के लिए अलग-अलग नंबर डायल नहीं करना होगा। विकसित देशों में पहले से यह मॉडल काम कर रहा है। अमेरिका में सभी तरह की इमर्जेंसी सेवाओं के लिए 911 नंबर का इस्तेमाल होता है। यहां पर डिस्पैचर कॉल को लोकल इमर्जेंसी एजेंसियों तक पहुंचाता है। कई यूरोपीय देशों में इमर्जेंसी सेवाओं के लिए 112 नंबर का इस्तेमाल होता है। बगैर किसी चार्ज के किसी भी लैंडलाइन और मोबाइल फोन से इस नंबर को डायल किया जा सकता है। कई देशों में डिसकनेक्टेड लैंडलाइन या मोबाइल फोन से भी इमर्जेंसी कॉल करने की सुविधा होती है।
इंडिया में टेलीकॉम रेगुलेटर ट्राई का मानना है कि अलग-अलग इमर्जेंसी सेवाओं के लिए नंबर अलग-अलग होने से यूजर्स के लिए कन्फ्यूजन की स्थिति पैदा होती है। फिलहाल भारत में पुलिस (100), आग (101), एंबुलेंस (102) और इमर्जेंसी आपदा मैनेजमेंट (108) के लिए अलग-अलग नंबर हैं। साथ ही, कई राज्यों ने भी अपनी तरह से कई हेल्पलाइन नंबर पेश किए हैं। मसलन दिल्ली में मुश्किल में फंसी महिलाओं के लिए 181 नंबर है, जबकि गुम बच्चे और महिलाओं के लिए 1094 नंबर है। दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध के लिए 1096 नंबर है, जबकि उत्तर प्रदेश में पुलिस हेडक्वार्टर हेल्पलाइन नंबर 1090 है।
ट्राई का कहना है कि मौजूदा अलग-अलग नंबर वाले सिस्टम को खत्म करने की जरूरत है। इस संबंध में सलाह-मशविरे की प्रक्रिया के तहत ट्राई ने सभी मोबाइल फोन कंपनियों से कहा है कि इमर्जेंसी का हालत में इतने सारे नंबरों को याद रखना बेहद मुश्किल है। ट्राई के मुताबिक, ‘मौजूदा सिस्टम के तहत एक और खामी यह है कि इमर्जेंसी हालत में कई तरह की एजेंसियों से संपर्क करने की जरूरत होती है। ऐसे में अलग-अलग नंबरों पर डायल कर सभी को एक ही हालत की जानकारी देनी होती है। इससे मदद मिलने में देरी हो सकती है। लिहाजा, भारत में सिंगल नंबर वाले इंटीग्रेटेड इमर्जेंसी कम्युनिकेशन और रिस्पॉन्स सिस्टम की जरूरत है।’