इमालवा – भोपाल | देश की सबसे बड़ी पंचायत याने की लोकसभा के मतदान का पहला चरण शुरू होने में सिर्फ सत्रह दिन बचे हैं लेकिन अभी तक किसी प्रमुख राजनीतिक दल ने चुनाव घोषणापत्र भी जारी नहीं किया है. यानि अभी तक मतदाता को विभिन्न राजनीतिक दलों की नीतियों और उनके मंतव्यों के बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है. हां, यदि उम्मीदवारों के चयन को उनकी नीतियों या मंतव्यों का सूचक माना जाए तो कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ होने के तमाम दावों के बावजूद सभी राजनीतिक दल पुरानी लीक पर ही चल रहे हैं और केवल एक आधार पर अपने उम्मीदवारों का चयन कर रहे हैं और वह आधार है उनके जीतने की संभावना .
करिश्मे पर भरोसा
कांग्रेस की कार्यशैली को देखते हुए लगता है कि उसे अपने दस साल के कार्यकाल के दौरान हुए रिकॉर्डतोड़ भ्रष्टाचार से कोई डर नहीं है. यदि होता तो वह भ्रष्टाचार के आरोप के कारण रेलमंत्री के पद से अलग होने वाले पवन बंसल को चंडीगढ़ से अपना उम्मीदवार घोषित न करती. पार्टी को राहुल गांधी के व्यक्तित्व के करिश्मे पर जरूरत से ज्यादा भरोसा है . कांग्रेस आलाकमान की रणनीति व्यक्ति केन्द्रित होने के साथ – साथ व्यक्ति { मोदी } का विरोध करने तक सिमट कर रह गई है . चुनाव के इस महत्वपूर्ण समय में कांग्रेस पार्टी को विरोधियों से ज्यादा क्षति उन नेताओं के कारण उठाना पड रही है जो चुनाव मैदान से किनारा कर गए है . इनमे पी चिदम्बरम और मनीष तिवारी जैसे केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने वाले नेता भी है . इस तरह की जानकारी संचार माध्यमो की सुर्खियाँ बन रही है जिससे आम मतदाता में कांग्रेस के प्रति अच्छा सन्देश नहीं पहुचं सका है | अधिकांश चुनाव विश्लेषक और राजनीतिक टिप्पणीकार कांग्रेस की पतली हालत को देखते हुए उसे मिलने वाली सीटों की संख्या को दो अंकों में सिमटता देख रहे रहे हैं. यानि अगर उसे 100 सीटें भी मिल जाएं तो यह उनकी आशा से अधिक ही होगा.
व्यक्तित्व पर केंद्रित प्रचार
दूसरी और बीजेपी ने मान लिया है कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए हैं. उसका पूरा प्रचार उनके व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द केन्द्रित है. उनकी छवि देश को बचाने वाले नेता की बनाई जा रही है. भाजपा में एक बार फिर से फिल गुड ( अति आत्मविश्वास ) का माहौल है . पार्टी के कर्ताधर्ता यह मानकर चल रहे है की अब उनकी सरकार बनने ही वाली है . इस अति आत्मविश्वास से पार्टी पूर्व में भी भारी नुकसान उठा चुकी है . पार्टी के नेता शायद यह भूल गए है की अच्छे कामकाज के बावजूद अटलजी की सरकार को जनता ने वापस नहीं आने दिया था . भाजपा में शीर्ष नेताओं की आपसी सर फुटव्वल की ख़बरें प्रतिदिन सुर्खियाँ बन रही है | एक और पार्टी के नेता अपने पक्ष में लहर ही नहीं सुनामी की घोषणा कर रहे है तो दूसरी और तमाम वरिष्ठ नेता सुरक्षित गढ़ से चुनाव मैदान में उतरने की जीद कर रहे है . जहां तक सुशासन का सवाल है तो मोदी के गुजरात मॉडल को लगातार उछाला जा रहा है, लेकिन यह नहीं बताया जा रहा कि इसे पूरे देश पर कैसे लागू किया जाएगा. वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं की पार्टी में वापसी के खिलाफ सार्वजनिक रूप से विचार व्यक्त कर चुकी हैं तो अब वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी अपने चुनावक्षेत्र को लेकर क्षुब्ध हैं.
बीजेपी का इतिहास रहा है कि वह अपने पक्ष में लहर होने का जोर-शोर से प्रचार करती है और फिर स्वयं ही उस प्रचार का शिकार हो जाती है.
त्रिशंकु लोकसभा
देश की दो प्रमुख पार्टियों की इस स्थिति को ध्यान में रखकर देश की क्षेत्रीय पार्टियां भी अपने जोड़-तोड़ में लगी हैं. उन्हें पता है कि त्रिशंकु लोकसभा में उनका महत्व बड़ी पार्टियों से भी अधिक होगा. वामपंथी पार्टियों की ताकत बढ़ने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे. हिन्दी प्रदेश में उनकी हालत पहले से भी अधिक पतली है वरना मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी कानपुर से सांसद रही सुभाषिणी अली को पश्चिम बंगाल में बैरकपुर से खड़ा न करती.
निर्वाचन आयोग ने सात अप्रैल से बारह मई तक चुनाव कराने की घोषणा की है. केंद्र शासित राज्यों को मिलाकर 21 प्रांतों में मतदान एक ही दिन में पूरा हो जाएगा. 10 प्रांतों में दो और तीन चरणों में वोट डाले जाएंगे. पश्चिम बंगाल और जम्मू कश्मीर में पांच तो उत्तर प्रदेश और बिहार में छह चरणों में मतदान होगा.
राज्यवार चुनावी कार्यक्रम
आंध्र प्रदेश (42 सीटें) 30 अप्रैल और 7 मई
अरुणाचल प्रदेश (2 सीटें) 9 अप्रैल
असम (14 सीटें) 7, 12 और 24 अप्रैल
बिहार (40 सीटें) 10, 17, 24, 30 अप्रैल और 7, 12 मई
छत्तीसगढ़ (11 सीटें) 10, 17, 24 अप्रैल
गोवा (2 सीटें) 17 अप्रैल
गुजरात (26 सीटें) 30 अप्रैल
हरियाणा (10 सीटें) 10 अप्रैल
हिमाचल प्रदेश (4 सीटें) 7 मई
जम्मू कश्मीर (6 सीटें) 10, 17, 24, 30 अप्रैल और 7 मई
झारखंड (14 सीटें) 10, 17, 24 अप्रैल
कर्नाटक (28 सीटें) 17 अप्रैल
केरल (20 सीटें) 10 अप्रैल
मध्य प्रदेश (29 सीटें) 10, 17, 24 अप्रैल
महाराष्ट्र (48 सीटें) 10, 17, 24 अप्रैल
मणिपुर (2 सीटें) 9, 17 अप्रैल
मेघालय (2 सीटें) 9 अप्रैल
मिजोरम (एक सीट) 9 अप्रैल
नागालैंड (एक सीट) 9 अप्रैल
ओडिशा (21 सीटें) 10, 17 अप्रैल
पंजाब (13 सीटें) 30 अप्रैल
राजस्थान (25 सीटें) 17, 24 अप्रैल
सिक्किम (एक सीट) 12 अप्रैल
तमिलनाडु (39 सीटें) 24 अप्रैल
त्रिपुरा (दो सीटें) 7, 12 अप्रैल
उत्तर प्रदेश (80 सीटें) 10, 17, 24, 30 अप्रैल और 7, 12 मई
उत्तराखंड (पांच सीटें) 7 मई
पश्चिम बंगाल (42 सीटें) 17, 24, 30 अप्रैल और 7, 12 मई
अंडमान निकोबार द्वीप समूह (एक सीट) 10 अप्रैल
चंडीगढ़ (एक सीट) 10 अप्रैल
दादर नगर हवेली (एक सीट) 30 अप्रैल
दमन दीव (एक सीट) 30 अप्रैल
लक्षद्वीप (एक सीट) 10 अप्रैल
दिल्ली (सात सीटें) 10 अप्रैल
पुद्दुचेरी (एक सीट) 24 अप्रैल