सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आसाराम के खिलाफ कथित यौन उत्पीड़न मामले में सीबीआई जांच कराने की मांग वाली जनहित याचिका को नामंजूर कर दिया।
याचिका में कोर्ट की निगरानी में सीबीआई को मामले की जांच सौंपने की गुजारिश की गई थी।
जस्टिस एके पटनायक की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसके साथ ही नाबालिगों के खिलाफ होने वाले अपराध के मामलों को तेजी से निपटाए जाने के संबंध में निर्देश जारी करने की दलील को भी खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि कानून बनाने का काम विधायिका का है।
इस मसले पर चेन्नई निवासी डॉ डीआई नाथन ने सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता की ओर से पीठ से गृह मंत्रालय को यह निर्देश जारी करने की मांग की गई कि वह देशभर के सभी जिला स्तर के पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारियों को कहे कि बच्चे और नाबालिगों के यौन उत्पीड़न मामले में महिला पुलिस की टीम जांच करे।
इस पर पीठ ने कहा कि हम कानून निर्माता नहीं है। आप इसके लिए अपनी मांगें लेकर कानून बनाने वालों के पास जाइए।
याचिका में जोधपुर आश्रम परिसर में आसाराम से संबंधित इस घटना की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
याचिका में यह भी कहा गया था कि गृह मंत्रालय को पीड़ितों की उम्र के निर्धारण के लिये तत्काल वैज्ञानिक तरीके से परीक्षण कराने का निर्देश दिया जाना चाहिए और जांच की गहन निगरानी की जानी चाहिए ताकि सबूत नष्ट नहीं किए जा सकें।
साथ ही याचिका में कहा गया था कि किशोर न्याय कानून, 2000 के उद्देश्यों का लगातार उल्लंघन हो रहा है और पुलिस और राज्य प्रशासन भी उनका पालन नहीं कर रहा है।
आरोपी भी नाबालिग पीड़ितों के निजता और जीने के अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं।