नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 26 मई को अपने दफ्तर में एक साल पूरा कर लेंगे। इससे पहले उन्होंने प्रतिष्ठित अमेरिकी मैगजीन टाइम से शासन-प्रशासन, देश और विदेश के हालातों पर खुलकर बात की। आतंकी संगठनों से जुड़े सवाल पर बोले, “हमें आतंकियों को नेम-प्लेट से नहीं देखना चाहिए।’ प्रेरणा से जुड़े सवाल पर तो गला भर आया। रो ही पड़े। जानते हैं कि किस मुद्दे पर प्रधानमंत्री क्या बोले…
गरीबी से मिली प्रेरणा
यह मुझे गहराई से छूता है। मैं बहुत ही गरीब परिवार में जन्मा। बचपन में रेलवे कोच में चाय बेचा करता था। मेरी मां दूसरों के घर पर बर्तन मांझती थी। मैंने गरीबी को काफी करीब से देखा है। मैं गरीबी में जिया हूं। मेरा पूरा बचपन ही गरीबी में गुजरा है। गरीबी मेरी जिंदगी की पहली प्रेरणा थी।
यह मुझे गहराई से छूता है। मैं बहुत ही गरीब परिवार में जन्मा। बचपन में रेलवे कोच में चाय बेचा करता था। मेरी मां दूसरों के घर पर बर्तन मांझती थी। मैंने गरीबी को काफी करीब से देखा है। मैं गरीबी में जिया हूं। मेरा पूरा बचपन ही गरीबी में गुजरा है। गरीबी मेरी जिंदगी की पहली प्रेरणा थी।
आर्थिक सुधारों पर
एक तरफ पिछली सरकार के 10 साल का कार्यकाल है। दूसरी ओर मेरी सरकार का 10 महीने का कार्यकाल। पिछले साल तक सरकार में कुछ नहीं हो रहा था। पॉलिसी पैरालिसिस था। कोई नेतृत्व नहीं था। अब पूरी दुनिया भारत को लेकर उत्साहित है। फिर चाहे आईएमएफ हो, वर्ल्ड बैंक हो, मूडीज हो या अन्य क्रेडिट एजेंसियां। एकमत से कह रहे हैं कि भारत का आर्थिक भविष्य उज्ज्वल है।
एक तरफ पिछली सरकार के 10 साल का कार्यकाल है। दूसरी ओर मेरी सरकार का 10 महीने का कार्यकाल। पिछले साल तक सरकार में कुछ नहीं हो रहा था। पॉलिसी पैरालिसिस था। कोई नेतृत्व नहीं था। अब पूरी दुनिया भारत को लेकर उत्साहित है। फिर चाहे आईएमएफ हो, वर्ल्ड बैंक हो, मूडीज हो या अन्य क्रेडिट एजेंसियां। एकमत से कह रहे हैं कि भारत का आर्थिक भविष्य उज्ज्वल है।
अमेरिका के प्रति नजरिए पर
हम नैसर्गिक सहयोगी हैं। हमें यह नहीं देखना चाहिए कि हम एक-दूसरे के लिए क्या कर सकते हैं। बल्कि यह देखना चाहिए कि हम मिलकर दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत बनाने के लिए क्या कर सकते हैं।
हम नैसर्गिक सहयोगी हैं। हमें यह नहीं देखना चाहिए कि हम एक-दूसरे के लिए क्या कर सकते हैं। बल्कि यह देखना चाहिए कि हम मिलकर दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत बनाने के लिए क्या कर सकते हैं।
भारत की धार्मिक विविधता पर
मेरा, मेरी पार्टी और मेरी सरकार का एक ही सिद्धांत है – सबका साथ, सबका विकास। जब भी अल्पसंख्यक समुदाय के लिए किसी ने नकारात्मक विचार पेश किया, हमने तत्काल उसकी निंदा की। सरकार के लिए सिर्फ एक ही धर्मग्रंथ है, भारत का संविधान। सभी धर्मों और समुदायों को यहां समान अधिकार है। मेरी सरकार जाति, धर्म या संप्रदाय के आधार पर भेदभाव बर्दाश्त नहीं करेगी।
मेरा, मेरी पार्टी और मेरी सरकार का एक ही सिद्धांत है – सबका साथ, सबका विकास। जब भी अल्पसंख्यक समुदाय के लिए किसी ने नकारात्मक विचार पेश किया, हमने तत्काल उसकी निंदा की। सरकार के लिए सिर्फ एक ही धर्मग्रंथ है, भारत का संविधान। सभी धर्मों और समुदायों को यहां समान अधिकार है। मेरी सरकार जाति, धर्म या संप्रदाय के आधार पर भेदभाव बर्दाश्त नहीं करेगी।
सरकार चलाने पर
सबसे बड़ी चुनौती थी कि मैं संघीय सरकार के ढांचे में नया था। अलग-अलग विभाग अलग-अलग काम करते थे। ऐसा लगता था कि हर विभाग अपने आप में एक सरकार है। मेरी कोशिश बंटे हुए विभागों को साथ लाने की थी। ताकि सब लोग समस्या को मिलकर देख सकें।
सबसे बड़ी चुनौती थी कि मैं संघीय सरकार के ढांचे में नया था। अलग-अलग विभाग अलग-अलग काम करते थे। ऐसा लगता था कि हर विभाग अपने आप में एक सरकार है। मेरी कोशिश बंटे हुए विभागों को साथ लाने की थी। ताकि सब लोग समस्या को मिलकर देख सकें।
अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी पर
अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी अमेरिकी सरकार का स्वतंत्र फैसला है। लेकिन अफगानिस्तान में स्थायी सरकार के हित में बेहतर होगा यदि अफगान सरकार के साथ बातचीत की जा सके।
अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी अमेरिकी सरकार का स्वतंत्र फैसला है। लेकिन अफगानिस्तान में स्थायी सरकार के हित में बेहतर होगा यदि अफगान सरकार के साथ बातचीत की जा सके।
आतंकवाद के खतरे से निपटने पर
हमें आतंकियों को इस तरह नहीं देखना चाहिए कि वह किस समूह से ताल्लुक रखते हैं, उनकी भौगोलिक स्थिति क्या है, पीड़ित कौन हैं। यह समूह या नाम बदलते रहते हैं। आज आप तालिबान या आईएस को देख रहे हैं; कल किसी नए नाम से देखेंगे। अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र को प्रस्ताव पारित करना होगा। ताकि साफ हो कि किसे आतंकी माना जाए और किसे नहीं। आतंक को धर्म से अलग करना होगा। इससे आतंकी अलग-थलग पड़ेंगे।
हमें आतंकियों को इस तरह नहीं देखना चाहिए कि वह किस समूह से ताल्लुक रखते हैं, उनकी भौगोलिक स्थिति क्या है, पीड़ित कौन हैं। यह समूह या नाम बदलते रहते हैं। आज आप तालिबान या आईएस को देख रहे हैं; कल किसी नए नाम से देखेंगे। अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र को प्रस्ताव पारित करना होगा। ताकि साफ हो कि किसे आतंकी माना जाए और किसे नहीं। आतंक को धर्म से अलग करना होगा। इससे आतंकी अलग-थलग पड़ेंगे।