पांच राज्यों में नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे लोकसभा की भावी तस्वीर बहुत हद तक साफ कर देंगे। यही कारण है कि इस चुनाव को लोकसभा का सेमीफाइनल माना जा रहा है। 

वैसे भी इन राज्यों में मुख्य मुकाबला उन दो दलों भाजपा और कांग्रेस के बीच है, जिनकी अगुवाई वाले गठबंधन एनडीए और यूपीए के बीच ही लोकसभा चुनाव में मुख्य टक्कर होनी है। 

इन चुनावों में जिस दल का प्रदर्शन खराब होगा, लोकसभा चुनाव में उसकी नैया डूबने की भविष्यवाणी मानी जाएगी। खराब प्रदर्शन जहां भाजपा में नए सिरे से कलह की जमीन तैयार कर सकता है। 

वहीं अगर ऐसा कांग्रेस के साथ हुआ तो पहले ही आंध्र प्रदेश के मोर्चे और नेतृत्व के सवाल पर हांफ रही पार्टी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हमला करने के बदले बचाव की मुद्रा में होगी।

जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा हुई है, उसमें चार राज्य राजस्थान, दिल्ली, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ ही राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। 

इनमें राजस्थान और दिल्ली में कांग्रेस की सरकार है तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की। 

जाहिर है कि दिल्ली की सत्ता के सेमीफाइनल में दोनों ही दल अपने राज्यों को बचाने और प्रतिद्वंद्वी के राज्य पर कब्जा करने के लिए पूरी ताकत झोंकेंगे। 

चुनाव के महत्व को समझते हुए इस बार कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी खुद ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ में काफी समय से सक्रिय हैं। 

उन्हीं के निर्देश पर मध्यप्रदेश में अंतिम समय में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। 

उधर, भाजपा सभी राज्यों में मोदी को आगे कर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर चुकी है।

अगर चुनाव नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं आए तो पार्टी नए सिरे से कलह का शिकार हो सकती है। उल्लेखनीय है कि पार्टी आलाकमान ने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इच्छा को दरकिनार कर मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है। 

चौहान मोदी को इन चुनावों के बाद उम्मीदवार बनाए जाने के पक्ष में थे। अब अगर नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं रहे तो आडवाणी खेमा मोदी के साथ-साथ पार्टी नेतृत्व पर नए सिरे से हमला बोलेगा। 

इसके अलावा विपक्ष इस बात को तूल देगा कि मोदी का गुजरात के बाहर कोई करिश्मा नहीं है। जाहिर है कि इन परिस्थितियों में पार्टी के समक्ष विपक्ष के हमले का जवाब देना आसान नहीं होगा।

उधर, तेलंगाना मुद्दे पर जूझ रही कांग्रेस अगर इन चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई तो उसके लिए भी हालात संभालने मुश्किल होंगे। पार्टी नेतृत्व अभी भी मोदी के समक्ष राहुल को उतारने में हिचकिचा रहा है। 

खास बात यह है कि यूपीए एक के मुकाबले यूपीए दो बुरी तरह सिकुड़ चुका है। ऐसे में अगर इन चुनावों में भाजपा बाजी मार ले गई तो पार्टी के लिए खुद का बचाव बेहद मुश्किल होगा। 

फिर नई समस्या मोदी के तेजी से बढ़ते ग्राफ से फौरी तौर पर निपटने की होगी। 

चुनाव नतीजे के इसी महत्व को भांपते हुए दोनों दल इन राज्यों में महीनों से एक दूसरे को पछाड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

By parshv