नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में शुक्रवार को कहा कि मतदाताओं के पास नकारात्मक वोट डालकर चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशियों को अस्वीकार करने का अधिकार है। न्यायालय का यह निर्णय प्रत्याशियों से असंतुष्ट लोगों को मतदान के लिए प्रोत्साहित करेगा।
निर्वाचन आयोग को उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि वह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में और मतपत्रों में प्रत्याशियों की सूची के आखिर में ‘ऊपर दिए गए विकल्पों में से कोई नहीं’ का विकल्प मुहैया कराएं ताकि मतदाता चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों से असंतुष्ट होने की स्थिति में उन्हें अस्वीकार कर सकें।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि नकारात्मक मतदान (निगेटिव वोटिंग) से चुनावों में शुचिता और जीवंतता को बढ़ावा मिलेगा तथा व्यापक भागीदारी भी सुनिश्चित होगी, क्योंकि चुनाव मैदान में मौजूद प्रत्याशियों से संतुष्ट नहीं होने पर मतदाता प्रत्याशियों को खारिज कर अपनी राय जाहिर करेंगे।
पीठ ने कहा कि नकारात्मक मतदान की अवधारणा से निर्वाचन प्रकिया में सर्वांगीण बदलाव होगा, क्योंकि राजनीतिक दल स्वच्छ छवि वाले प्रत्याशियों को ही टिकट देने के लिए मजबूर होंगे।
पीठ ने कहा कि नकारात्मक मतदान की अवधारणा 13 देशों में प्रचलित है और भारत में भी सांसदों को संसद भवन में मतदान के दौरान ‘अलग रहने’ के लिए बटन दबाने का विकल्प मिलता है। व्यवस्था देते हुए पीठ ने कहा कि चुनावों में प्रत्याशियों को खारिज करने का अधिकार संविधान द्वारा भारतीय नागरिकों को दिए गए बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।