राहुल जीत गए हैं क्योंकि कर्नाटक में कांग्रेस जीत गई है। हलांकि कांग्रेसी इसे पार्टी की जीत नहीं राहुल की जीत बता रहे हैं। शायद यही कांग्रेस की फितरत है। हारी तो कांग्रेस जीते तो राहुल बाबा।
कर्नाटक में 60 सीटों पर राहुल ने प्रचार किया। 37 सीटों पर मोदी ने भी दस्तक दी। नतीजे आए तो इन सीटों पर न राहुल की वजह से कोई बड़ा फर्क दिखा न मोदी के चलते। मगर…

राहुल जीत गए हैं क्योंकि कर्नाटक में कांग्रेस जीत गई है। हलांकि कांग्रेसी इसे पार्टी की जीत नहीं राहुल की जीत बता रहे हैं। शायद यही कांग्रेस की फितरत है। हारी तो कांग्रेस जीते तो राहुल बाबा।
कर्नाटक में 60 सीटों पर राहुल ने प्रचार किया। 37 सीटों पर मोदी ने भी दस्तक दी। नतीजे आए तो इन सीटों पर न राहुल की वजह से कोई बड़ा फर्क दिखा न मोदी के चलते। मगर कांग्रेसियों को कौन समझाए। उन्हें तो राहुल भक्ति का मौका चाहिए।
राहुल बाबा के सिर जीत का सेहरा बांधने में देरी पीएम ने भी नहीं की। बकौल मनमोहन सिंह, ‘मैं किसी पर व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन कर्नाटक की जनता ने एक खास विचारधारा को नकार दिया है। कर्नाटक में पार्टी की जीत में राहुल गांधी ने बड़ी भूमिका निभाई है।’
जब प्रधानमंत्री ही आगे बढ़कर राहुल गांधी का गुणगान करने में जुट गए तो फिर बाकियों की क्या बिसात। जनार्दन द्विवेदी, राजीव शुक्ला, कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह सभी ने एक सुर में इसे राहुल गांधी की जीत बता डाला।
बिहार में हारे, यूपी में एड़ी-चोटी का जोर लगाकर भी पिट गए। गुजरात में तो हथियार ही डाल दिया लेकिन इन हार को या तो कांग्रेस की हार बता दी गई या फिर संगठन की कमजोरी। मगर कर्नाटक में बाजी हाथ आते ही यह राहुल बाबा का करिश्मा बन गया।
शायद यही है कांग्रेस की थ्योरी। हारे तो कांग्रेस लेकिन जीते तो राहुल। क्योंकि कांग्रेस में एक ही परिवार जीतता है। एक ही परिवार का करिश्मा काम करता है। बाकियों की बिसात ही क्या वह तो जैसे बस उस परिवार की वजह से हैं। उस परिवार के लिए हैं।