केंद्रीय एजेंसियों को किसी के भी कंम्प्यूटर की निगरानी का अधिकार देने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. इस मामले में 4 जनहित याचिकाएं दायर की गईं थीं, जिनपर सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय को नोटिस जारी किया है. याचिका में कहा गया है कि सरकार का यह आदेश सूचना प्रौद्योगिकी कानून और निजता के अधिकार का उल्लंघन है.

सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील एमएल शर्मा, अमित साहनी, टीएमसी विधायक महुआ मित्रा और श्रेया सिंघल ने 20 दिसंबर के इस आदेश के खिलाफ 4 अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं. याचिका में आदेश की खिलाफत करते हुए कहा गया है कि इससे जांच एजेंसियों को मनमानी का अधिकार मिल जाएगी और वह किसी की भी निजता का हनन करने के लिए स्वतंत्र होंगी. किसी के कम्प्यूटर की भी बगैर किसी सुरक्षा मानदंड के निगरानी नहीं की जा सकती. अब सुप्रीम कोर्ट इस आदेश की न्यायिक समीक्षा करेगा और सरकार के 4 हफ्ते में कोर्ट को अपना जवाब देना है.

दरअसल, गृह मंत्रालय की ओर से जारी आदेश के मुताबिक प्रवर्तन निदेशायलय, रॉ, आईबी, सीबीआई, सीबीडीटी और दिल्ली पुलिस कमिश्नर समेत 10 एजेंसियों को अधिकार दिया गया है कि वो किसी के कम्प्यूटर में जेनरेट, ट्रांसमिट और स्टोर किए जाने वाले दस्तावेजों को देख सकता है. मतलब ये हुआ कि जरूरत पड़ने पर ये जांच एजेंसियां आपके कम्प्यूटर की निगरानी कर सकती हैं.

सरकार के इस फैसला का विपक्षी दलों ने काफी विरोध किया है. संसद के शीतकालीन सत्र में भी इस फैसले के खिलाफ काफी हंगामा देखने को मिला था. टीएमसी, कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने इस निजता के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए कहा था कि सरकार इसके जरिए एजेंसियों का इस्तेमाल कर किसी को भी निशाना बना सकती है.