भारत में सरकार के हर स्‍तर पर फैला है व्यापक भ्रष्टाचार: अमेरिकी रिपोर्ट

0

अमेरिकी कांग्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में न्यायपालिका समेत सरकार के हर स्तर पर व्यापक भ्रष्टाचार है. अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी द्वारा जारी वार्षिक रिपोर्ट ‘कंट्री रिपोर्ट्स ऑन ह्यूमन राइट्स प्रेक्टिसेज’ में कहा गया है कि भ्रष्टाचार व्यापक स्तर पर है.

इस रिपोर्ट के अनुसार हालांकि आधिकारिक स्तर पर भ्रष्टाचार होने पर कानून आपराधिक दंड देता है लेकिन भारत सरकार ने कानून को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया और अधिकारी छूट का फायदा उठा कर भ्रष्ट कामों में लिप्त हो जाते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के हर स्तर पर भ्रष्टाचार मौजूद है. सीबीआई ने जनवरी से नवंबर माह के बीच में भ्रष्टाचार के 583 मामले दर्ज किए हैं. इसमें कहा गया है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को वर्ष 2012 में 7,224 मामले मिले. 5,528 मामले वर्ष 2012 के थे और बाकी 1,696 मामले 2011 के थे. आयोग ने 5,720 मामलों पर कार्रवाई की सिफारिश की थी.

रिपोर्ट के मुताबिक सीवीसी ने शिकायतें दर्ज कराने के लिए टोल फ्री हॉटलाइन और सूचनाएं साझा करने के लिए एक वेब पोर्टल शुरू किया. गैर सरकारी संगठनों ने पाया कि घूस आम तौर पर जल्दी काम करवाने के लिए दी गई. इनमें पुलिस सुरक्षा, स्कूल में दाखिला, पानी की आपूर्ति या सरकारी मदद जैसे काम प्रमुख थे. इसमें कहा गया कि समाज के संगठनों ने पूरे साल सार्वजनिक प्रदर्शनों और भ्रष्टाचार के व्यक्तिपरक खुलासे करने वाली वेबसाइटों के जरिए जनता का ध्यान भ्रष्टाचार की ओर खींचा. रिपोर्ट के अनुसार संसद ने दिसंबर में एक विधेयक पारित करके लोकपाल नामक एक निगरानी संगठन की स्थापना की, जो कि सरकार में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करेगा.

विदेश मंत्रालय ने कहा कि गरीबी हटाने और रोजगार दिलाने के कई सरकारी कार्यक्रम खराब क्रियान्वयन और भ्रष्टाचार के कारण प्रभावित हुए. उदारहरण के लिए आरटीआई कानून के तहत सरकारी दस्तावेज हासिल करने के बाद एक याचिकाकर्ता ने महाराष्ट्र आदिवासी विकास विभाग के फंड में अनियमितता के आरोप लगाए. 13 जून को बम्बई उच्च न्यायालय ने इसकी जांच के लिए एक विशेष दल के गठन के आदेश जारी किए. इस मामले में आदिवासियों के कल्याण की राशि अन्य कामों में खर्च किए जाने का आरोप था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यायिक व्यवस्था पर काम का बहुत गंभीर बोझ है और इसमें मामले निपटाने की आधुनिक व्यवस्था का अभाव है. इस वजह से न्याय मिलने में या तो देरी होती है या फिर न्याय मिल ही नहीं पाता. अगस्त में कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि उच्चतम न्यायालय में तीन और उच्च न्यायालयों में 275 रिक्तियां हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि अधीनस्थ न्यायपालिकाओं में भी रिक्तियों की संख्या बहुत ज्यादा है. राज्यों में 3700 से ज्यादा पद भरे जाने हैं. कानून मंत्री ने मामलों के निपटारे में हो रहे विलंब का कारण अदालतों में खाली पदों को बताया है.