हिंदू धर्म के अनुसार मांग में सिंदूर भरना सुहागिन होने का प्रतीक है। सिंदूर नारी श्रंगार का भी एक महत्तवपूर्ण अंग है। सिंदूर मंगल-सूचक भी होता है। सुहागिन स्त्रियॉं अपने जीवन में पति को सर्वोच्च स्थान देती हैं । इसलिये सुहाग के प्रतीक को अपने मस्तक पर धारण करती हैं । यह सिन्दूर के प्रयोग का भावनात्मक पहलू है ।

भारतीय वैदिक परंपरा खासतौर पर हिंदू समाज में शादी के बाद महिलाओं को मांग में सिंदूर भरना आवश्यक होता है। आधुनिक दौर में अब सिंदूर की जगह कुंमकुम और अन्य चीजों ने ले ली है। सिंदूर लगाने के पीछे एक बड़ा वैज्ञानिक कारण भी है जो पूरी तरह स्वास्थ्य से जुड़ा है। सिर के उस स्थान पर जहां मांग भरी जाने की परंपरा है,

मस्तिष्क की एक महत्वपूर्ण ग्रंथी होती है, जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। यह अत्यंत संवेदनशील भी होती है। यह मांग के स्थान यानी कपाल के अंत से लेकर सिर के मध्य तक होती है। सिंदूर मेंं पारा नाम की धातु होती है। पारा ब्रह्मरंध्र के लिए औषधि का काम करता है। यह महिलाओं को तनाव से दूर रखता है और मस्तिष्क हमेशा चैतन्य अवस्था में रखता है। विवाह के बाद ही मांग इसलिए भरी जाती है क्योंकि विवाहके बाद जब गृहस्थी का दबाव महिला पर आता है तो उसे तनाव, चिंता और अनिद्रा जैसी बीमारिया आमतौर पर घेर लेती हैं। पारा धातु का स्पर्श मष्तिष्क के लिए लाभकारी है, इस कारण सिंदूर मांग में भरा जाता है। इससे स्त्री के शरीर में स्थित विद्युतीय उत्तेजना नियंत्रित होती है।

विवाह के समय वर द्वारा वधू की मांग मे सिंदूर भरने के संस्कार को सुमंगली क्रिया कहते हैं। इसके बाद विवाहिता पति के जीवित रहने तक आजीवन अपनी मांग में सिन्दूर भरती है।