झाबुआ/इंदौर.मध्य प्रदेश के निमाड़ में फेमस भगोरिया मेला शुरू हो गया है। यह भील और भिलाला आदिवासियों की प्रेम और शादी से जुड़ा पारंपरिक मेला है। इसमें आदिवासी लड़के मनपसंद हमसफर की तलाश करते हैं।
होली से एक हफ्ते पहले शुरू होता है मेला
– निमाड़ इलाके के झाबुआ, धार, बडवानी और अलिराजपुर में होली के मौके पर भगोरिया पर्व मनाया जाता है।
– होली से पहले शुरू होकर मेला होली के दिन समाप्त हो जाता है। आदिवासी साल भर इसका इंतज़ार करते हैं।
– वैसे रवि फसलों की खेती पूरी हो जाने से भी इस पर्व को जोड़कर देखा जाता है।
कैसे करते हैं प्रेम का इजहार?
– ढोल-मांदल की थाप पर सज-धजकर युवा मेले में आते हैं। आदिवासी युवतियां भी रंग-बिरंगे कपड़ों में सजकर पहुंचती हैं।
– लड़के मनपसंद हमसफर तलाशते हैं। तलाश पूरी होने पर वे लड़की को पान खिलाते हैं।
– फिर लड़का और लड़की मेले से भाग जाते हैं। भागने की वजह से ही इसे ‘भगोरिया पर्व’ कहा जाता है।
– इसके कुछ दिनों बाद आदिवासी समाज उन्हें पति-पत्नी का दर्जा दे देता है।
मेले में और क्या?
– युवकों की अलग-अलग टोलियां सुबह से ही बांसुरी-ढोल-मांदल बजाते मेले में घूमते हैं।
– वहीं, आदिवासी लड़कियां हाथों में टैटू गुदवाती हैं। आदिवासी नशे के लिए ताड़ी पीते हैं।
– हालांकि, वक्त के साथ मेले का रंग-ढंग बदल गया है। अब आदिवासी लड़के ट्रेडिशनल कपड़ों की बजाय मॉडर्न कपड़ों में ज्यादा नजर आते हैं।
– मेले में गुजरात और राजस्थान के ग्रामीण भी पहुंचते हैं। हफ्तेभर काफी भीड़ रहती है।