सक्रिय वन्य-प्राणी प्रबंधन के फलस्वरूप मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। भारतीय वन्य-जीव संस्थान, देहरादून की गणना के अनुसार वर्ष 2006 में प्रदेश में 300 बाघ थे, जो वर्ष 2010 में 257 हो गये। पुनः वर्ष 2014 में बढ़कर 308 हो गये, जिनमें से 237 बाघ प्रदेश के टाइगर रिजर्व में और 71 बाघ टाइगर रिजर्व के बाहर हैं। यह जानकारी नई दिल्ली में आज प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा उदघाटित टाईगर रेंज देशों के मंत्रियों की बैठक में दी गई।
बैठक में विश्व वन्य-प्राणी निधि एवं ग्लोबल टाईगर फोरम द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार विश्व में आधे से ज्यादा बाघ भारत में हैं। मध्य भारत भू-दृश्य (Central India Landscape) भारत में बाघों के अस्तित्व के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। मध्यप्रदेश के कॉरिडोर से ही उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के बाघ रिजर्व आपस में जुड़े हुए हैं। भारत में बाघों की संख्या 2022 तक दोगुनी वृद्धि के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये मध्यप्रदेश में बाघों के प्रबंधन में निरंतरता एवं उत्तरोत्तर सुधार बहुत महत्वपूर्ण है।
प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ाने के विशेष प्रयास किये गये हैं। राज्य शासन की सहायता से लगभग 50 से अधिक गाँवों का विस्थापन किया जाकर बहुत बड़ा भू-भाग जैविक दबाव से मुक्त कराया गया है। इस समय कान्हा, पेंच, और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र से सभी गाँवों को विस्थापित किया जा चुका है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का 90 प्रतिशत से अधिक कोर क्षेत्र भी जैविक दबाव से मुक्त हो चुका है। विस्थापन के बाद घास विशेषज्ञों की मदद लेकर स्थानीय प्रजातियों के घास के मैदान विकसित किये जा रहे हैं। इससे शाकाहारी वन्य-प्राणियों के लिये वर्ष भर चारा उपलब्ध होता रहे। इसके अतिरिक्त समस्त संरक्षित क्षेत्रों में रहवास विकास कार्यक्रम चलाया जा रहा है। सक्रिय प्रबंधन से विगत एक वर्ष के भीतर 500 से अधिक चीतलों को अधिक जनसंख्या वाले भाग से कम जनसंख्या वाले एवं चीतल विहीन क्षेत्रों में सफलता से स्थानांतरित किया गया है। इससे चीतल जो कि बाघों का मुख्य भोजन है, उनकी संख्या में वृद्धि भी हो और पूरे भू-भाग में वह फैल जाये।
संरक्षित क्षेत्र के बाहर भी बढ़ रहे हैं बाघ
संरक्षित क्षेत्रों के बाहर भी देवास और ओंकारेश्वर के क्षेत्रों में कैमरा ट्रेप में कई स्थानों पर बाघों को पाया गया है। शाजापुर एवं भोपाल में भी संरक्षित क्षेत्रों से बाघ विचरण कर पहुँचे हैं जिन्हें पकड़ कर संरक्षित क्षेत्रों में भेजा गया है। बाघों की संख्या में वृद्धि के लिये राज्य शासन एव वन विभाग निरंतर प्रयासरत् है एवं सक्रिय प्रबंधन के फलस्वरूप बाघों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों के विस्थापन के फलस्वरूप वन्य-प्राणियों के रहवास क्षेत्र का विस्तार हुआ है तथा उन ग्रामों के गरीब और पिछड़े तबके एवं आदिवासी समुदायों को भी विकास की मुख्य-धारा से जोड़ा गया है।