मध्य प्रदेश में कांग्रेस की करारी शिकस्त और आदिवासी इलाकों में कांग्रेस के सफाए के बाद कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया को हटाने की कवायद तेज हो गई हैं। भूरिया के आने के बाद भाजपा ने आदिवासियों में अपनी पकड़ और ज्यादा मजबूत बना ली है। भाजपा को राज्य में आदिवासी बहुल इलाके में 47 सीटों में से 31 सीटें हासिल करने में सफलता मिली है।
भूरिया के प्रभुत्व वाले झाबुआ जिले में कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है। झाबुआ जिले में भूरिया के विरोधी जेवियर मेड़ा ने भूरिया के इस्तीफे की मांग कर डाली ह
कांतिलाल भूरिया को हटाकर उनके स्थान पर रामेश्वर नीखरा को अध्यक्ष बनाने की चर्चा तेज हो गई हैं, हालांकि रामेश्वर नीखरा ही पूरे चुनाव का प्रबंधन देख रहे थे। भूरिया में सांगठनिक क्षमता का अभाव माना जाता है।
कांतिलाल भूरिया के बारे में कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उनके आने के बाद कांग्रेस ने प्रदेश में लगातार अनुसूचित जाति व जनजाति वाली सीटों पर उपचुनाव हारे और अब विधानसभा चुनाव बुरी तरह हारा। इस चुनाव में भूरिया का आदिवासी कार्ड बिलकुल नहीं चल पाया।
भूरिया ने कुछ दिनों पहले ही अमर उजाला से बातचीत में कहा था कि उनके आने के बाद आदिवासियों में यह संदेश गया कि कांग्रेस एक आदिवासी को नेतृत्व सौंप सकती है, इसलिए आदिवासी बड़ी संख्या में कांग्रेस के पक्ष में आए हैं, लेकिन चुनाव के बाद उनका तर्क उलटा पड़ गया है।
चुनाव का कुप्रबंधन
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि प्रदेश कांग्रेस चुनाव का प्रबंधन करने में बुरी तरह विफल रही। प्रदेश कांग्रेस ने केंद्रीय नेतृत्व को गफलत में रखा। आलोट में प्रेमचंद गुड्डू ने जिस तरह से पिछले दरवाजे से अपने बेटे को टिकट दिलाया, उससे प्रदेश अध्यक्ष की साख को बड़ा बट्टा लगा।
भूरिया की भतीजी कलावती भूरिया ही झाबुआ जिले में बागी हो गईं और उसने कांग्रेस की संभावनाओं का भारी क्षति पहुंचाई। इसी तरह झाबुआ जिले में पूर्व विधायक वीर सिंह का जिस तरह से टिकट काटा गया, उस पर भी काफी विवाद हुआ। अपने कार्यकर्ताओं और उम्मीदवारों के नाम याद नहीं रख पाने के लिए ख्यात भूरिया कई बूथों पर अपने एजेंट तक नियुक्त नहीं कर पाए।
टिकटों का गलत बंटवारा
भूरिया और अजय सिंहको टिकटों का बंटवारा करने वाली स्क्रीनिंग समिति में रखा गया था। उनके बारे में कहा गया कि उन्होंने पूरी तरह दिग्विजय सिंह के प्रभाव में निर्णय किए और ऐसे लोगों को बड़ी तादाद में टिकट दे दिए जिनके जीतने की कोई संभावना नहीं थी।
जीत की संभावना वाले अनेक उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिए गए। सीहोर में बागी के तौर पर जीते सुदेश राय को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया। इसी तरह शमशाबाद में कांग्रेस ने जीत की संभावना वाले उम्मीदवार को टिक नहीं दिया। भोपाल में पार्टी ने दो जिला अध्यक्षों पीसी शर्मा और अवनीश भार्गव को टिकट देना उचित नहीं समझा, जो जीतने योग्य उम्मीदवार थे। टिकटों के बंटवारे में लेन-देन के भी आरोप लगे हैं। चुनावों के दौरान कई उम्मीदवारों के बारे में कहा गया कि उन्होंने टिकट हासिल करने के लिए लेन-देन किया है।