एक मेंढक था। कुएं में रहता था। कुएं में वह महाज्ञानी था। सभी मेंढकों को ज्ञान सुनाता। सभी मेंढक उसके दिव्य ज्ञान से अभिभूत थे। एक दिन जोर की बरसात हुई। तालाब का पानी कुएं में बह आया। पानी के साथ एक मेंढक भी बह आया। कुएं वाले मेंढक ने अपनी ज्ञानशाला लगाई। तालाब वाले मेंढक ने ऐतराज जताया। बोला, “बंधुवर जो तुम बोल रहे हो ये तुम्हारी सीमा का सच है। इससे बड़ा ज्ञान तो कुएं के बाहर है।”
कुएं वाला मेंढक बोला, “कुएं के बाहर कुछ नही होता। तुम कौन ग्रह से आये हो? हम बरसो से इस ज्ञान को सहेज कर बैठे हैं। यही सच है । तुम कोई नास्तिक काफ़िर मालूम पडते हो।”
तालाब का मेंढक बोला- “ना तजरबेकारी से वायज की ये बाते हैं- बूत हमको कहें काफ़िर अल्लाह की मर्जी है। भाई बाहर चलो मेरे साथ। बाहर एक तालाब है जहां मै रहता हूं। ज्ञान का खुला आसमान। मौसमो का मजा और इंसानी गन्दगी का असली मंज़र।”
तय हुआ कि तालाब की दुनिया देखी जाए और तालाब जाने की जुगत बिठा ली गयी।
दोनो मेंढक तालाब पहुंच गये। तालाब की बड़ी दुनियां देखकर कुएं के मेंढक को अपने और अपने पुरखों पर बड़ा तरस आया। उसे लगा जैसे किसी ने उसे गांव की गली की पाठशाला से उठा कर शहर के महाविद्यालय में डाल दिया हो। उसने ठाना कि वह इस ज्ञान को जानेगा। वह तालाब के मेंढकों में बैठता उनके प्रवचन सुनता और तालाब की बड़ी और विस्तृत दुनिया के अनुभव सुनकर हैरान होता।
एक दिन बाढ़ आई। नदी ने सब किनारे तोड़ दिये। नदी का पानी तालाब में आने लगा। पानी के साथ नदी की मछलियां मेंढक भी तालाब मे आ गए । तालाब में प्रवचन चले। तालाब का मेढक सधी आवाज में अपना ज्ञान सुनाता और सभी मेंढक ध्यान से सुनते। कुएं वाला मेंढक तो मुतमईन ही हुआ जाता कि कहां एक दायरे में बंधा मै महाज्ञानी होने का भ्रम पाले रहा। ज्ञान तो ये है।वाह धन्य हो गया मैँ।
तालाब का मेंढक बोल रहा था, तभी नदी का मेंढक बोल पड़ा- ‘तुम बकवास कर रहे हो। तुम्हारा ज्ञान सीमित है । तालाब से बाहर देखो, निकलो घूमो। नदी में गये हो कभी? हम वहीं से आये हैं। नदी बताती है कि जिंदगी में रवानी रखो। तुम्हारी तरह रुके रहो सड़ते रहो। ये ज्ञान है कोई? तालाब के महाज्ञानी मेंढक और नदी के मेंढक में तनातनी हो गयी। कुएं का मेंढक सब देख सुन रहा था। वह समझ गया कि कुएं से बाहर तालाब है तो तालाब के बाहर नदी भी है। मुझे नदी देखनी चाहिए।
कुएं के मेंढक ने नदी में जाने की जुगत लगाई। नदी में पहुंचकर उसने देखा। गति में रखती है नदी। यहां कोई प्रवचन नही। कोई सत्संग नही। कितनी मस्त है ये महानगरीय सी जिंदगी। किसी को किसी से मतलब नहीं। दौड़ते रहो दौड़ते रहो।
दौड़ते दौड़ते लेकिन एक दिन मेंढक का ठहरने का मन हुआ। उसने भर प्रयास जोर लगाया कि वह ठहर जाए लेकिन बहाव ने ठहरने ना दिया। उसने ताकत लगाई तब उसे नया ज्ञान मिला कि बहाव के पक्ष में कोई ताकत नही लगानी पड़ती। लेकिन बहना पड़ेगा। उसने साथ बह रहे मेंढक से पूछा। भाई ठहरने की जुगत बता दो। साथ वाला मेंढक बोला अब समंदर ही तुम्हारा ठौर है भाई। रोवो या हंसो। एक काम करो। आंख बन्द करके बहाव का मजा लो। इसे ही अध्यात्म कहते हैं। किसी दिन समंदर में पहुंच जाओगे खुद-बखुद।
कुएं के मेंढक को नया स्रोत मालूम हुआ। समंदर अभी बाकी है? और हम हैं कि ज्ञान के अपने सीमित स्रोत पर कितना इतराते रहे।
एक दिन मेंढक समंदर में जा गिरा। बहुत शोर बहुत ऊंचाई से वह जो गिरा तो जख्मी हो गया।लेकिन समंदर देख कर उसकी आंखे फ़टी की फटी रह गयी। ये कहाँ आ गया मै। कितने कुएं कितने तालाब कितनी नदियां इसमे समा जाएं और कितनी प्रजातियां, कितने मर्मज्ञ, कितने ज्ञानी, कितने दार्शनिक। ओह भगवान। क्या खज़ाना खोल दिया तुमने ज्ञान का।
वाह। ज्ञान का समंदर अब मिला। और जिंदगी को ठौर भी मिला। नदी ने तो थका दिया था। मेंढक जी भर सुस्ताया। सुस्ताने के बाद उसने समन्दर को समझना चाहा। समझे कैसे, पकड़े कहाँ से समझ को। जितनी प्रजातियां उतने विद्वान, उतने मठाधीश। सब अपने अस्तित्व को बचाने को धर्म बता रहे, सब अपने समूह के विस्तार में रत, सब कमजोर जीव समूह में रहने-चलने को बाध्य, सब ताकतवरों से बचने को शिक्षा धर्म औऱ ज्ञान घोषित कर रहे। कमजोर मर रहे, ताकतवर फल फूल रहे, विशलकाय हो रहे। मेंढक ने समन्दर की शान्त सतह के नीचे भयानक घमासान देखे। जहां सुरक्षित नही कोई वहां ज्ञान कैसा, शांति कैसी, अध्यात्म कैसा। औऱ धर्म तो कैसा ही होगा यहां का, समझा जा सकता है।
मेंढक को ज्ञान से वितृष्णा होने लगी। उसे मालूम था समंदर से बाहर भी एक दुनिया हैं। लेकिन समन्दर के किसी जीव को उस बाहर की दुनिया से मतलब नही था। सब अपना धरातल ढूंढ रहे थे, सब अपने बचने-फैलने को धर्म बता रहे थे, यही एकमात्र सार था समन्दर के ज्ञान का। समन्दर जबकि असीमित था।
कुएं के मेंढक को अब ज्ञान के बाद ज्ञान की व्यर्थता का बोध हुआ। वह ज्ञान की खोज बन्द करके कुएं में वापिस जाने की जुगत लगाने लगा।