कुबड़ा पेड़ -एक कहानी

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एक जंगल में बहुत बड़े बड़े सुंदर सुंदर पेड़ थे। लेकिन एक पेड़ बड़ा विचित्र और टेढ़ा मेढ़ा था। उसका तना, डालियाँ सब बेढंगे से थे। पत्ते भी उस पर नाम के ही थे। जंगल का कोई भी जानवर उसकी छाया में नही बैठता था और ना ही कोई पक्षी उस पर अपना घोसला बनाना पसंद करता था। उसे सब कुबड़ा पेड़ कहते थे।

कुबड़ा पेड़ अपने साथ के सुंदर और सुडोल पेड़ों को देखकर निराश हो जाता था। वो सोचता था कि दूसरे पेड़ कितने सुंदर हैं। यदि मैं भी सुंदर होता तो पक्षी मुझ पर भी घोसला बनाते, पशु मेरे छाया में आराम करते और उनके बच्चे यहाँ खेल कूद करते। मेरे आसपास भी चहचहाहट और खिलखिलाहट होती। भगवान ने मेरे साथ कितना अन्याय किया है।

एक दिन जंगल में लकड़हारा आया। कुबड़े पेड़ को देखकर लकड़हारा बोला यह पेड़ तो किसी काम का है नहीं। उसने सुंदर सीधे-सीधे पेड़ों को चुना और कुछ ही देर में काट काट कर जमीन पर डाल दिया।

यह सब देख कर कुबड़े पेड़ की आंखें खुल गईं। उसने सोचा अच्छा हुआ की भगवान ने मुझे टेढ़ा मेढ़ा बनाया, अगर मैं भी बाकी पेड़ों की तरह सुंदर और सीधा होता तो आज लकड़हारा सबसे पहले मुझे ही काटता। उसने तुरंत भगवान से माफी मांगी और फिर कभी अपने टेढ़े मेढ़े और कुरूप होने की शिकायत नहीं की।