पाले का डर -एक कहानी

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एक बहुत सुंदर गाँव था। चारों ओर हरी भरी पहाड़ियों से घिरा हुआ। पहाड़ियों के पीछे एक ताक़तवर शेर रहता था। पहाड़ियों पर चढ़कर जब वो दहाड़ता था तो गाँव वालों की डर के मारे कंपकंपी छूट जाती थी।

एक साल बहुत भीषण ठंड पड़ रही थी। पहाड़ियाँ बर्फ से ढंक गईं थीं। शेर को कई दिनों तक कोई शिकार नही मिला, भूख से उसका हाल बेहाल हुआ जा रहा था। जंगल में शिकार नही मिला तो मजबूर होकर शेर शिकार की तलाश में गाँव की ओर चल पड़ा।

शिकार की तलाश में इधर उधर घूमते हुए शेर को थोड़ी दूर एक झोपड़ी दिखाई दी। झोपड़ी की खिड़की में से रोशनी आ रही थी। अंदर एक बच्चा रो रहा था। उसकी मां उसे चुप कराने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो चुप तो क्या होता, और ज्यादा चिल्ला चिल्ला कर रोने लगा।

शेर झोपड़ी के बाहर पहुंचा तभी बच्चे की माँ अंदर से जोर से बोली – अरे बेटा चुप हो जा। देख लोमड़ी अंदर आ रही है। बाप रे कितनी बड़ी लोमड़ी है। हो… इतना बड़ा मुंह है इसका। ये तुझे खा जाएगी।

ये सुनकर शेर वहीं रुक गया। सोचने लगा मैं भी तो देखूं कितनी बड़ी लोमड़ी है, आज इस लोमड़ी को ही अपनी खुराक बनाऊंगा। लेकिन बच्चा चुप नही हुआ।

फिर माँ बोली – चुप हो जा। देख भालू आ रहा है। इतना मोटा भालू। खिड़की के बाहर बैठा है। अंदर आके तुझे खा जाएगा।लेकिन बच्चा रोता ही रहा। बाहर बैठा शेर सोच रहा था कि बड़ा ढीठ बच्चा है, ना लोमड़ी से डरता है ना भालू से। मैं भी तो देखूं जरा इस निडर बच्चे को। शेर उसे देखने के लिए दरवाजे से अंदर झाँकने लगा।

शेर अंदर झाँक रहा था तभी माँ बोली – अरे बेटा देख कितना मोटा शेर अंदर आ गया, जल्दी चुप हो जा।
लेकिन बच्चे के कान पर जूं भी नही रेंगी, वो रोता ही रहा।
शेर सोचने लगा – कितना बहादुर बच्चा है, ये तो शेर से भी नही डरता। और उसकी माँ को कैसे पता लगा की मैं अंदर आगया हूँ? ये सोचकर शेर थोड़ा घबरा गया।

तभी माँ जोर सो चिल्लाई – चुप हो जा बेटा नही तो पाला अंदर आ जाएगा।

बच्चा पाले का नाम सुनते ही एकदम खामोश हो गया, वो तो पहले से ही ठंड से परेशान था। उसने रोना बन्द कर दिया। शेर सोच में पड़ गया – ये पाला क्या बला है? ये तो बहुत डरावना होगा जो इतना निडर बच्चा इसका नाम सुनकर चुप हो गया। कहीं ये मुझे भी ना खा जाए।पाले के बारे में सोच सोच कर डर से शेर के हाथ पाँव फूलने लगे।

उसी समय झोपड़ी की छत पर एक चोर चढ़ गया। वो गाय-भैंस चुराने के लिए आया था और छत से देखना चाहता था कि जानवर कहाँ बंधे हैं। उसने शेर को देखा तो अंधेरे में उसे लगा कि ये कोई मोटी भैंस है। शेर को भैंस समझ चोर उसके ऊपर कूद गया।

शेर की पाले के नाम से पहले से हालत खराब थी। उसे लगा कि ये पाला ही है जो उसके ऊपर कूदा है। उसने आव देखा ना ताव बस अंधाधुन्द दौड़ना शुरू कर दिया जंगल की ओर।

चोर भी समझ गया कि जिसके ऊपर वो कूदा है ये कोई गाय-भैंस नही बल्कि शेर है। शेर भागता जा रहा था, चोर ने उसके बालों को कस के पकड़ रखा था। चोर जानता था कि अगर वो शेर के ऊपर से गिर गया और शेर ने उसे देख लिया तो फिर शेर उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा। शेर को डर था कि कहीं पाला उसे ना खा जाए, चोर को डर था कि कहीं शेर उसे ना खा जाए। एक दूसरे कर डर से दोनों की जान निकली जा रही थी।

शेर तेजी से पहाड़ी की ओर दौड़ा जा रहा था। चोर को आगे एक पेड़ की डाली झुकी हुई नजर आई। शेर जब डाली के नीचे पहुँचा तो चोर ने उछलकर डाली पकड़ ली और पेड़ पर चढ़ गया।

शेर से पीछा छूटने पर चोर ने चैन की साँस ली। शेर की भी जान में जान आई। उस दिन के बाद पाले के डर से शेर ने कभी भी दोबारा गांव में जाने का नाम नही लिया।