7 तारीख को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है और माना जाता है कि वह सृष्टि के इंजीनियर हैं और इसीलिए आज के दिन यंत्रों और मशीनों की भी पूजा-अर्चना की जाती है.
क्वांर माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को देवशिल्पी के आगमन को विश्वकर्मा पूजा के रूप में मनाया जाता है. भव्य पंडालों में विधि-विधान से भगवान विश्वकर्मा की स्थापना की जाती है. इस बार देवशिल्पी की जयंती के अवसर पर उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र शुभ संयोग लेकर आ रहा है. इस दिन मशीनों की स्थापना और पूजा भी विशेष रूप से फलदायी रहेगी.
विश्वकर्मा जी का पूजन
भगवान विश्वकर्मा की पूजा षोडसोपचार पंचोपचार विधि से आस्था और भक्तिभाव के साथ करनी चाहिए, ताकि हमारे जीवन में उपयोगी हर संसाधन सुचारू रूप से चलता रहे. आज प्रतिपदा तिथि पूर्व भाद्र नक्षत्र मीन राशि में चंद्रमा है. इस दौरान अमृत योग में भगवान विश्वकर्मा जी का पूजन होगा. सुबह 7.30 बजे से 12 बजे दिन तक फिर 3 बजे से देर शाम तक पूजा-अर्चना करने का श्रेष्ठ मुहूर्त है.
देवशिल्पी ने किया लंका और द्वारिका का निर्माण
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवशिल्पी ने अनेक भव्य भवनों का निर्माण करने के साथ ही नगर भी बसाए थे. इसमें सोने की लंकापुरी, भगवान कृष्ण की द्वारिकापुरी, पांडवों के लिए हस्तिनापुर और सुदामा नगरी का निर्माण उन्होंने ही किया था. उन्होंने अपने हाथों से जगन्नाथपुरी स्थित भगवान जगन्नाथ की काष्ठ की प्रतिमा को भी आकार दिया है.
पितृपक्ष की शुरुआत
आज कन्या राशि में सूर्य का भी प्रवेश होगा और इसी के साथ ही पितृपक्ष भी शुरू होगा. पितृपक्ष 30 सितंबर तक रहेगा. सनातन धर्म में देव एवं पितरों की पूजन करने की परंपरा अति प्राचीन काल से चली रही है. बगैर देव या पितर पूजन किए एक भी शुभ कार्य और धार्मिक कार्य नहीं करना चाहिए. कुछ लोग प्रतिदिन पितरों के लिए तर्पण करते हैं जो लोग प्रतिदिन तर्पण नहीं करते, वे खासकर इन 15 दिनों में पितृपक्ष में अपने पूर्वजों को जल अवश्य देते हैं.