किसी गांव में एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पत्नी और पुत्र के साथ रहता था| ब्राह्मण को गांव से जो भिक्षा मिलती, उसी से वह अपने परिवार का भरण-पोषण करता था| एक दिन ब्राह्मणी अपने पति से बोली – “मुझे अपनी कोई चिंता नहीं है स्वामी! मैं आपके साथ भूखी-प्यासी रहकर भी अपना जीवन व्यतीत कर सकती हूं, लेकिन मुझे अपने बेटे की भूख-प्यास नहीं देखी जाती|”
ब्राह्मण बोला – “मैं तुम्हारी भावनाओं को समझता हूं प्रिये! लेकिन भाग्य के लेख को विधाता भी नहीं बदल सकता| हमारे भाग्य में निर्धन रहना ही लिखा है|”
ब्राह्मणी बोली – “भाग्य के भरोसे बैठे रहना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं है| अगर इंसान कोशिश करे तो वह कर्म करके अपने भाग्य को बदल सकता है| आप कहीं परदेश में जाएं| मुझे विश्वास है कि आप वहां अच्छी आय करेंगे और हमारा भाग्य बदल जाएगा|”
ब्राह्मण बोला – “तुम्हारी बात तर्कसंगत है प्रिये! मगर मुझे भिक्षा मांगने और पंडिताई के सिवा कोई काम नहीं आता|”
ब्राह्मणी बोली – “हमारे गांव में आपकी पंडिताई की कोई कद्र नहीं है| किसी दूसरे गांव या नगर में आपकी पंडिताई चल निकले तो हमारे बुरे दिन फिर जाएं|”
अपनी पत्नी की सलाह मानकर ब्राह्मण दूसरे नगर में पहुंच गया| उसका दुर्भाग्य उस पर घात लगाए बैठा था| नगर में उसे कोई टके सेर पूछने वाला भी नहीं मिला| हालातों को देखते हुए वह सोचने लगा कि इस नगर से उसका गांव ही अच्छा है| नगरवासी तो पूरे नास्तिक हैं| उसे भिक्षा तक भी देने को तैयार नहीं हैं| यह सोचकर वह थक हारकर अपने गांव लौट आया और पहले की भांति पंडिताई करके और भिक्षा मांगकर अपना गुजरा करने लगा|
एक दिन वह भिक्षा मांगकर लौट रहा था| तभी उधर से भगवान शिव माता पार्वती के साथ गुजरे| उस निर्धन ब्राह्मण की हालत देखकर माता पार्वती ने ब्राह्मण की तरफ संकेत करते हुए भगवान शिव से कहा – “आप इस ब्राह्मण को देख रहे हैं स्वामी!”
शिव बोले – “हां, वह बहुत निर्धन है और दुखी भी है|”
पार्वती बोली – “आप उसके दुख का निवारण करें नाथ! एक तो ब्राह्मण दूसरे दरिद्र, मुझसे उसका दुख देखा नहीं जाता|”
शिव बोले – “यह मृत्युलोक है, प्रिये! यहां हर प्राणी किसी न किसी दुख से त्रस्त है| सब अपने-अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं| तुम किस-किस का दुख दूर कराओगी|”
पार्वती बोली – “आपको उस निर्धन ब्राह्मण को धनवान बनाना होगा स्वामी!”
शिव बोले – “वह भाग्यहीन है पार्वती! उसके भाग्य में फटे-पुराने कपड़े और रूखा-सूखा भोजन ही लिखा है|”
मगर पार्वती अपनी जिद पर अड़ी रही| अंत में हारकर शिव को पार्वती की बात माननी पड़ी| उन्होंने उस रास्ते में, जिस रास्ते ब्राह्मण जा रहा था, सोने की एक ईंट डाल दी| अचानक ब्राह्मण को क्या सूझा, उसने सोचा कि वह आंखें बंद करके कितनी दूर चल सकता है| यह सोचकर वह अपनी आंखें बंद करके चलने लगा और सोने की ईंट के बिल्कुल समीप से होकर आगे गुजर गया| काफी दूर आगे जाने के बाद ही उसने अपनी आंखें खोलीं|
यह देख भगवान शिव मुस्कुराते हुए बोले – “हमने तुमसे कहा था न प्रिये कि वह ब्राह्मण भाग्यहीन है| भाग्यहीन मनुष्य कभी धन प्राप्त नहीं कर सकता|”
और फिर भगवान शिव पार्वती के साथ कैलाश पर्वत लौट गए| लेकिन वहां पहुंचने के बाद भी पार्वती उस निर्धन ब्राह्मण के बारे में सोचने लगी| वह किसी न किसी तरह उस ब्राह्मण को देखना चाहती थी| पार्वती को उदास देखकर भगवान शिव ने पूछा – “क्या बात है प्रिये? इतनी उदास क्यों हो?”
पार्वती ने भगवान शिव से निवेदन किया – “स्वामी! उस निर्धन ब्राह्मण का परिवार तीन सदस्यों का है – उनमें आप किसी एक को धनवान बना दें| ब्राह्मण परिवार की दरिद्रता मिट जाएगी| आप उन तीनों को एक-एक वर दें| मुझे उम्मीद है कि वे तीनों आपसे दौलत का वर ही मांगेंगे| इस तरह वे धनवान बन जाएंगे|”
शिव बोले – “ठीक है प्रिये! जैसा तुम चाहोगी वैसा ही होगा|”
और फिर कुछ दिनों बाद भगवान शिव पार्वती के साथ ब्राह्मण के घर पहुंचे| साक्षात भगवान शिव और पार्वती को देखकर ब्राह्मण परिवार आत्मविभोर हो उठा| उन्होंने भगवान शिव और पार्वती के चरण स्पर्श किए| शिव बोले – “मैं तुम तीनों को एक-एक वर देना चाहता हूं| तुम तीनों अपनी इच्छानुसार वर मांग सकते हो|”
ब्राह्मणी उतावली होते हुए बोली – “पहले मुझे वर दीजिए प्रभु!”
भगवान शिव ने कहा – “मांगो, क्या चाहती हो?”
काफी सोचने-समझने के बाद ब्राह्मणी बोली – “भगवन! मुझे दुनिया की इसबसे अधिक खूबसूरत और जवान औरत बना दीजिए| मरते दम तक मेरी जवानी और सुंदरता कायम रहे|”
भगवान शिव ने मुस्कुराकर कहा – “तथास्तु|”
अगले ही पल बूढ़ी ब्राह्मणी एक जवान और खूबसूरत युवती के रूप में बदल गई| उसी समय उनके घर के सामने से गांव के जमींदार का पुत्र गुजर रहा था, जो घोड़े पर सवार था| उसने खूबसूरत ब्राह्मणी को देखा तो उस पर मुग्ध हो उठा| वह इस खूबसूरत ब्राह्मणी से शादी करेगा| यह सोचकर उसने उसे अपने घोड़े पर बैठाया और घोड़ा अपनी हवेली की तरफ दौड़ा दिया|
यह देख ब्राह्मण अपनी छाती पीटते हुए विलाप करने लगा – “हाय! मेरी पत्नी|”
‘रोओ मत, ब्राह्मण श्रेष्ठ! तुम भी मुझसे कोई वर मांग लो| जो मांगोगे, तुम्हें मिलेगा|” भगवान शिव सांत्वना देते हुए बोले|
“मेरी पत्नी को वापस बुला लीजिए प्रभु! मुझे इसके सिवा कुछ भी नहीं चाहिए|” ब्राह्मण ने निवेदन करते हुए कहा|
भगवान शिव बोले – “तथास्तु|”
देखते ही देखते ब्राह्मणी वहां खड़ी थी| अपनी पत्नी को अपने सामने देखकर ब्राह्मण ने राहत की सांस ली| भगवान शिव ने ब्राह्मण पुत्र से कहा – “तुम क्या वर मांगते हो बेटा?”
ब्राह्मण पुत्र ने काफी सोचने-समझने के बाद कहा – “भगवान्! मुझे कुछ नहीं चाहिए| लेकिन आप मेरी मां को पहले जैसी बूढ़ी बना दीजिए|”
‘तथास्तु!’ भगवान शिव ने कहा और अगले ही पल ब्राह्मणी पहले के समान बूढ़ी हो गई| ब्राह्मण परिवार की मूर्खता पर पार्वती ने अपना माथा पीट लिया| सोचने लगी कि तीनों ही वास्तव में ही भाग्यहीन हैं| विधि ने उनके भाग्य में जो लिख दिया है, उसे देवी-देवता भी नहीं बदल सकते|