सत्य का फल

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एक बार विकास नगर के राजा भानु प्रताप के मन में एक बात आई| वह जानना चाहते थे कि जो लोग किसी न किसी अपराध के कारण दंडित

किए जाते हैं, उनमें सचमुच कोई पश्चाताप की भावना आती है या नहीं|

दूसरे दिन वह राजा अचानक अपने राज्य के बंदी गृह में पहुंच गया और सभी कैदियों से उनके द्वारा किए गए अपराध के बारे में पूछने लगा

कि किस कारण से उन्होंने अपराध किया और यहां बंदी ग्रह में कैद हैं|

एक कैदी ने कहा:-” राजन! मैंने कोई अपराध नहीं किया है| मैं निर्दोष हूं|”

दूसरा बंदी बोला:-” महाराज! मुझे फंसाया गया है| मैं भी निर्दोष हूं|”

इसी तरह सभी बंदी अपने आप को निर्दोष साबित करने लगे| फिर राजा ने अचानक देखा कि एक व्यक्ति सिर नीचे किए हुए आंसू बहा रहा

था| राजा ने उसके पास जाकर पूछा कि तुम क्यों रो रहे हो?

उस व्यक्ति ने बड़ी विनम्रता से कहा:-” हे राजन! मैंने गरीबी से तंग आकर चोरी की थी| मुझे आपके न्याय पर कोई शक नहीं है| मैंने अपराध

किया था, जिसका मुझे दंड मिला|”

राजा ने सोचा कि दंड का विधान सभी के अंदर प्रायश्चित का भाव पैदा नहीं करता है| लेकिन उन सभी कैदियों में से एक यही ऐसा व्यक्ति है

जो अपनी गलती का प्रायश्चित कर रहा है| यदि इस व्यक्ति को दंड से मुक्त किया जाए तो यह अपने अंदर सुधार कर सकता है|

इसलिए राजा ने उसे मुक्त कर दिया|