साधु और अहिंसा

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एक राजा था। उसके राज्य में चारों ओर सुख शान्ति थी। उसकी प्रजा भी बहुत मेहनती थी और सभी लोग अपना अपना काम बहुत अच्छे से करते थे।

एक बार उस देश में एक साधु सन्यासी आया। वो साधु बहुत मीठी मीठी बातें करता था। उसकी बातों में ऐसा जादू था कि उसके उपदेश सुनकर लोग मन्त्र मुग्ध हो जाते थे। साधु सबको कहता की हिंसा पाप है, जीव हत्या करने से नरक मिलता है। उसने लोगों को कहा की मोह माया को छोड़कर सदा भगवान के भजन करो और अपने भाग्य पर भरोसा रखो, भगवान सबको देता है। साधु ने कई कीर्तन मंडलियां बना लीं। सारे राज्य में दिन रात भजन कीर्तन होने लगा। लोग साधु के ऐसे भक्त्त बन गए की सारा दिन उसके पास बैठे रहते और अपने काम काज में बहुत कम रूचि लेने लगे। इस तरह उस देश का उत्पादन बहुत कम होगया और देश की प्रगति रुक गई। लोग भूल गए की सिर्फ धर्म का पालन करने से कुछ नहीं होता, काम करना भी बहुत जरूरी होता है।

राजा को यह सब देख कर बहुत चिंता होने लगी। उसका राज्य कमजोर होता जा रहा था। लोगों के दिल में अपने देश की रक्षा की भावना भी खत्म हो गई थी। इन सब बातों का फायदा उठा कर पड़ोसी राजा ने जस देश पर हमला कर दिया।

राजा ने अपनी प्रजा से कहा कि हम सब को दुश्मन से मुकाबला करना चाहिए। लेकिन लोग तो साधु के उपदेश सुन सुन कर अहिंसावादी हो गए थे। उनके दिमाग में यह बात पूरी तरह बैठ गई थी की हमें किसी को मारना नहीं चाहिए। कोई भी युद्ध करने के लिए तैयार नही था। राजा अपने देश की रक्षा करना चाहता था। उसने अपनी प्रजा के सब लोगों को समझाया कि अहिंसा बहुत अच्छी बात है लेकिन अगर तुम हमेशा ही अहिंसा अहिंसा करोगे तो तुम्हारे साथ ही हिंसा हो जाएगी, शत्रु तुम्हे मार डालेगा और हमारा देश गुलाम बन जाएगा। लेकिन राजा की बात किसी ने नही मानी।

शत्रु आगे बढ़ा आ रहा था और राजा हर कीमत पर अपने देश को बचाना चाहता था। राजा ने साधु को सबक सिखाने और लोगों को सुधारने का एक तरीका सोचा। राजा के महल में एक छोटा सा चिड़ियाघर था और एक भयंकर शेर भी पिंजरे में बंद था। राजा ने अपने दो विश्वासपात्र सैनिकों को अपने साथ लेकर शेर को चुपचाप उसी जंगल में ले जाने को कहा जहां साधु तपस्या करता था और लोगों को उपदेश देता था। वहाँ दो मोटे मोटे तने के पेड़ एक साथ थे इन दोनों पेडों के बीच बहुत कम खाली स्थान था। इतना कम खाली स्थान था की उनके बीच से शेर की पूँछ निकाली जा सकती थी लेकिन शेर नही निकल सकता था। राजा ने शेर का पिंजरा दोनों पेड़ों के साथ लगवाया और शेर की पूंछ पिंजरे के पीछे के दरवाजे से दोनों पेड़ो के बीच से निकाल ली और उसे मजबूती से पकड़ लिया। राजा ने सैनिकों से कहा कि वो आगे से पिंजरा खींच कर ले जाएं। सैनिकों ने पिंजरा हटा लिया। राजा शेर की पूंछ को पकड़े खड़ा था। सैनिक अपने राजा को ऐसी स्थिति में छोड़ कर जाना नही चाहते थे लेकिन राजा ने उन्हें जाने का आदेश दिया और कहा कि यह बात किसी को मत बताना कि शेर की पूंछ मैंने पकड़ी हुई है। सैनिक चले गए। राजा अपने पैर जमाये शेर की पूंछ को मजबूती से पकड़े खड़ा था। शेर की दहाड़ से राजा के प्राण सूख जाते लेकिन राजा ने पूँछ को नही छोड़ा।

सवेरा होते ही साधु वहाँ आया। राजा तो उसी की प्रतीक्षा में था। साधु को देखते ही राजा ने कहा – “साधु महाराज जी, में इधर से जा रहा था ये शेर अचानक मुझ पर झपटा, मैंने किसी तरह पेड़ों की आड़ लेकर इस शेर की पूंछ पकड़ ली और अपनी जान बचाई। अब मैं इस पूँछ को पकड़े पकड़े बहुत थक गया हूँ और ये शेर मेरे हाथ से छूटते ही मुझे खा जायेगा, आप तुरंत इसे मार डालो और मेरी जान बचाओ।” साधु बोला – “महाराज ये तो बड़ी अजीब समस्या है, परंतु मैं शेर को नहीं मार सकता, जीव हत्या करना पाप है।” राजा ने अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए कहा – “अच्छा तो आप इतना करें कि थोड़ी देर शेर की पूंछ को पकड़ लें तो मैं शेर को मार दूंगा, पूँछ पकड़ने में तो कोई पाप नहीं है।” पूँछ पकड़ने में तो कोई पाप नहीं था इसलिए साधु ने राजा की तरह पैर जमाकर पेडों के पीछे से शेर की पूंछ पकड़ली। राजा ने अपने हाथ हटा लिए और दूर खड़ा हो कर थोड़ा आराम किया। इतने में साधु का उपदेश सुनने के लिए साधु के भक्त भी वहाँ आने शुरू हो गए। साधु चिल्लाया – “राजन शेर मेरे हाथों से छूटा जा रहा है और मैं थक गया हूँ। ये तो छूटते ही मुझे खा जायेगा, जल्दी से इसे मारो।” अब राजा मुस्कुराने लगा और बोला – “साधु महाराज जी, आपकी तो यह शिक्षा है की जीव हत्या करना पाप है तो इस शेर को मार कर इसकी हत्या करने का पाप मैं अपने सर क्यों लूँ?” लेकिन साधु जोर जोर से रोने लगा, गिड़गिड़ाने लगा और बोला – “कोई मुझे बचाओ, कोई मुझे बचाओ” जब साधु बहुत जोर से रो रहा था तो राजा ने शेर को मार डाला। साधु ने राजा के पांव पकड़ लिए। अब तो बात साधु को भी समझ में आगई और प्रजा को भी समझ आगई। सभी को यह बात समझ में आगई कि हिंसा करना पाप है लेकिन जब कोई मजबूरी हो तो हिंसा करना भी जरूरी होता है।

अब सारी प्रजा मिलकर दुश्मन देश से युद्ध करने के लिए तैयार हो गई और राजा ने प्रजा की मदद से युद्ध जीत कर अपने राज्य और प्रजा को बचा लिया।