एक समय की घटना है कि बहुत बड़ी संख्या में खरगोश एक स्थान पर एकत्रित हुए और उन्होंने अपने कष्टपूर्ण जीवन के विषय में विचार-विमर्श किया|“इस संसार के जितने भी जीव हैं, “एक ने कहा – “हम खरगोश उन सभी से अधिक कोमल हैं| हमें दूसरे सभी जानवरों तथा खूंखार पशु-पक्षियों से खतरा रहता है| हम सभी से भयभीत रहते हैं| हमसे कोई भी भयभीत नहीं होता| यहां तक कि मनुष्य भी हमारा मांस खाते हैं|”
तभी एक दूसरे खरगोश ने कहा – “हाथी तो हमारा मांस नहीं खाते| मगर हममें से कई भाई अनगिनत बार इन हाथियों के पैरों तले कुचले गए हैं|”
तीसरे खरगोश ने कहा – “यह संसार हम जैसे दुर्बलों और लाचारों के लिए नहीं है| यहां केवल वही जीवित रह सकता है, जो शक्तिशाली हो| मुझे लगता है, हमारी समस्या का कोई हल नहीं है|”
तब एक वृद्ध-सा दिखने वाला मगर अनुभवी खरगोश उठ खड़ा हुआ और कहने लगा – “सुनो दोस्तो, हमारी समस्या का एक हल है| और यह हमारे सारे कष्टों को भी दूर कर देगा| हल यह है कि हम सभी सामूहिक रूप से नदी में कूद कर आत्महत्या कर लें| मृत्यु हमारे सारे कष्टों को दूर कर देगी|”
यह सुझाव सभी खरगोशों को पसंद आ गया| वे सभी पास बहने वाली एक नदी के किनारे आत्महत्या करने के लिए जमा हो गए| मगर आत्महत्या करने की अफरा-तफरी में उन्होंने इतना हो – हल्ला किया कि नदी किनारे बैठा मेंढ़कों का एक झुंड बुरी तरह घबरा गया| सभी मेंढ़क भयभीत होकर पानी में कूदने लगे|
यह देखकर बूढ़े खरगोश ने अपने साथियों को नदी में कूदने से रोकते हुए कहा – “मेरे भाइयो! हमें धैर्य रखना चाहिए और इस संसार में कुछ अधिक दिनों तक जीवित रहने का प्रयत्न करना चाहिए| हमें सोचना चाहिए कि कुछ ऐसे भी जीव हैं, जो हमसे भी अधिक दुर्बल हैं और हमसे डरते हैं| इस संसार में हर प्राणी किसी-न-किसी से डरता है|”