हर माँ अपने बच्चों पर दया बनाये रखती है। लेकिन चंपावत जिले में पर्वतों की श्रेणियों के बीच बसा मां वाराही देवी का मंदिर बेहद अनोखा है। यहां मां को प्रसन्न करने के लिए खून बहाए जाने की भी परंपरा बताई जाती है। यही नहीं यहां अगर किसी ने सीधी आंखों से मां के दर्शन कर लिए तो उसकी आंखों की रोशनी तक चली जाती है।
चली जाती है आंखों की रौशनी:
मां के इस दर से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं जाता है। बता दें कि यह मंदिर यहां आयोजित होने वाले ‘बग्वाल’ यानी कि पत्थरमार युद्ध के लिए भी प्रसिद्ध है। इसका इतिहास सदियों पुराना है। कहा जाता है कि मंदिर का ताल्लुक महाभारत काल से भी है।
पत्थर मार युद्ध:
मां वाराही देवी का मंदिर उत्तराखंड के लोहाघाट से तकरीबन 70 किलोमीटर देवीधुरा स्थित कस्बे में है। इस मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मंदिर में श्रावणी पूर्णिमा यानी कि रक्षाबंधन के दिन खास तरह की परंपरा ‘बग्वाल’ यानी कि पत्थरमार युद्ध का आयोजन किया जाता है।
दी जाती है नर बलि:
मां वाराही देवी मंदिर में ‘चंपा देवी’ और ‘लाल जीभ वाली महाकाली’ की मूर्ति स्थापित की गई है। बताया जाता है कि यहां मंदिर के पास ही रहने वाली स्थानीय जाति महर और फर्त्याल के लोग बारी-बारी से नर बलि देकर मां को प्रसन्न करते थे।