रतलाम विधान सभा चुनाव, मुद्दे गौण आरोप – प्रत्यारोप हावी

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इमालवा – रतलाम | जिले के पांच विधानसभा क्षेत्रों में से जिला मुख्यालय की रतलाम शहर विधानसभा सीट पर चुनाव का प्रचार अब गति पकड़ने लगा है | त्रिकोणीय संघर्ष के कारण मुकाबला बेहद रोचक होता चला जा रहा है | आरोप – प्रत्यारोप के जबरदस्त दौर और प्रचार वाहनों के भारी शौर – शराबे के बावजूद आम मतदाता मौन है | वैसे तो इस सीट पर 15 उम्मीदवार मैदान में है लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार अदिति दवेसर तथा भाजपा के चेतन काश्यप एवं निर्दलीय पारस सकलेचा प्रमुख प्रत्याशी के रूप में सामने है | निर्दलियों की बड़ी संख्या में मौजूदगी और जातिगत समीकरणों की उलझनें पुरे चुनावी परिद्रश्य को धुंधला रही है | इस सीट पर पिछले चुनाव में पारस सकलेचा निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मैं विजयी हुए थे और कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई थी |भाजपा और निर्दलीय के मध्य जीत का अंतर भी 31 हज़ार मतों का था | इस बार दोनों राजनैतिक पार्टियों ने नए उम्मीदवार मैदान में उतारे है , लेकिन निर्दलीय यथावत मैदान में है इसलिए ऊँट किस करवट बैठेगा इस बारे में कोई भी दावा नहीं कर सकता है |
पश्चिमी मध्य प्रदेश के प्रमुख शहर और मालवा की राजधानी के रूप में ख्यात रतलाम शहर को राजनैतिक रूप से बेहद संवेदनशील शहरों में गिना जाता है | चुनावी प्रचार – प्रसार के मामले में इस शहर को देश – विदेश में एक अलग ही पहचान मिली हुई है | लेकिन इस बार चुनाव आयोग की सख्त घेराबंदी के कारण वैसा चुनावी रंग नहीं जम पा रहा है | नमकीन के लिए ख्यात रतलाम शहर में चुनावी चटखारें भी बड़े निराले अंदाज़ में चलते है | आम सभाओं का यहाँ भारी क्रेज़ रहता है | इसी कारण सभाओं में यहाँ भारी भीड़ उमड़ती है | यंहा कुल मतदाता 1 लाख 97 हज़ार के लगभग है इनमे  मुस्लिम , जैन और ब्राह्मण वर्ग का बाहुल्य है | अन्य में राजपूत ओबीसी वर्ग और ईसाई तथा दाउदी बोहरा समाज की भी बड़ी संख्या है |
खानपान के शोकिन इस शहर में वर्ष 1985 में मात्र धन वैभव से ठनी लड़ाई – गरीब की हिम्मत – हिम्मत भाई जैसे एक नारें ने इस कदर प्रभाव छोड़ा था की संभाग की 29 सीटों में अकेले रतलाम ने भाजपा को विजयी बनाकर अलग ही परिणाम दिया था | यही हाल पिछले चुनाव में भी रहा था , प्रदेश में भाजपा को भारी बहुमत मिला था लेकिन रतलाम के मतदाताओं ने प्रदेश के गृहमंत्री को परास्त कर निर्दलीय प्रत्याशी को जीता दिया था | वर्ष 1957 में रतलाम से महिला उम्मीदवार श्रीमती सुमन जैन को जीत मिली थी | आपातकाल के बाद रतलाम शहर भाजपा का परम्परागत गढ़ माना जाने लगा था | भाजपा उम्मीदवार के रूप में हिम्मत कोठारी ने 8 में से 6 चुनाव में जीत हांसिल की थी | लगभग चालीस वर्षों के बाद रतलाम सीट पर इस बार कोठारी विहीन मुकाबला है | 

चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर भाग्य आजमा रही उम्मीदवार श्रीमती अदिति दवेसर वर्तमान में रतलाम नगर निगम में पार्षद है | विधि व्यवसाय से जुडी श्रीमती दवेसर कांग्रेस की महिला विंग की अध्यक्ष भी है |  भाजपा उम्मीदवार चेतन काश्यप का नाम एक बड़े उद्योगपति और समाजसेवी के रूप में जाना जाता है वर्तमान में उनके पास भाजपा के प्रदेश कोषाध्यक्ष का दायित्व है | चुनावी राजनीति में दोनों दलो के उम्मीदवारों को नया चेहरा माना जा सकता है | इनका मुकाबला वर्तमान विधायक पारस सकलेचा से है | वे पूर्व में रतलाम से निर्दलीय के रूप में महापौर का चुनाव भी जीते थे | पिछले चुनाव का मामला चुनाव याचिका के रूप में हाईकोर्ट में पहुचा था | पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी की याचिका पर कोर्ट ने कोठारी पर सकलेचा द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को बेबुनियाद मानते हुए चुनाव को शून्य घोषित कर दिया था | यह मामला अभी सर्वोच्य न्यायालय में स्टे के साथ विचाराधीन है |  

चुनावी मुद्दो पर बात की जाए तो यंहा मुध्दे गौण होने लगे है , पिछले चुनाव के बाद से आरोप – प्रत्यारोप का जो दौर चल पडा वह अभी तक बदस्तूर जारी है | निर्दलीय प्रत्याशी पारस  सकलेचा का चुनाव प्रचार लगभग चार माह से अनवरत चल रहा है जबकि भाजपा के चेतन काश्यप और कांग्रेस प्रत्याशी अदिति दवेसर के नाम अंतिम समय में घोषित हुए है | इसलिए शुरूआती दौर में पिछड़ने के बाद दोनों दलो के उम्मीदवार प्रचार के मामले में अब थोड़ा मुकाबले में आ गए है | निर्दलीय प्रत्याशी और वर्तमान विधायक अपने काम गिना रहे है और दोनों दलों के प्रत्याशी पर आरोपों की बोछार कर रहे है | भाजपा प्रत्याशी को प्रदेश की शिवराज सरकार के काम एवं अपनी समाजसेवी की छवी के आधार पर जीत का भरोसा है तो कांग्रेस उम्मीदवार को अपनी साफ़ छवी के साथ महिला मतों के धुर्वीकरण का भरोसा है |

अंतिम परिणाम किसके पक्ष में जाएगा यह अभी भविष्य के गर्भ में है | उम्मीदवारों के प्रति नाराजगी के चलते दोनों ही दलो में कार्यकर्ताओं की नाराजगी है तो आम आदमी निर्दलीय विधायक के कार्यो से संतुष्ट नहीं है | ऐसे में यह आशंका जताई जाने लगी है की कंही मतदाता नोटा बटन का उपयोग ज्यादा बड़ी संख्या में नहीं कर दे | फिलहाल तो सभी उम्मीदवार सोश्यल मीडिया के माध्यम का ज्यादा से जादा उपयोग करते हुए अपना पूरा जौर लगा रहे है | यह भी साफ़ कहा जा सकता है की सभी उम्मीदवार जातिगत समीकरणों को अपने – अपने पक्ष में करने के लिए पूरा जौर लगा रहे है |