रतलाम। कुदरत की मार ने किसानों के सारे अरमानों पर पानी फेर दिया। फसलें चौपट हो गईं जो बची हैं उनके भाव नहीं मिल रहे। सरकारी मुलाजिम खेतों का सर्वे करने नहीं पहुंचे। गरीब किसानों के सामने सालभर के गुजारे का संकट खड़ा हो गया है। बेटे-बेटियों की शादियां टल गई हैं। बैंक से लिए लोन को चुकाने का संकट खड़ा हो गया है। फसल बिगड़ जाने से आर्थिक स्थिति चरमरा गई है।
लिखित शिकायत करें–
कलेक्टर डॉ. संजय गोयल ने बताया सर्वे के दौरान अनाज फसलों में 25 फीसदी से कम नुकसान आया। इसलिए मुआवजा नहीं मिल पाएगा। आपत्ति है तो संबंधित तहसीलदार या एसडीएम के पास लिखित जानकारी दें। जांच होगी।
चकनाचूर हुए सपने :
18 बीघा जमीन के मालिक डेलनपुर निवासी मुकेश जाट बैंक कर्जे से परेशान हैं। उनका कहना है फसल में 30 से 40 प्रतिशत नुकसान हुआ लेकिन सर्वे तक नहीं हुआ। अधिकारी आए और कह गए यहां नुकसान नहीं हुआ। राहत नहीं मिलेगी। सोसाइटी का 1 लाख 30 रुपए का बकाया तो बाजार से पैसा उधार लेकर भर दिया। अब ट्रैक्टर की 1 लाख रुपए की किस्त जमा करने का संकट है। सोचा था इस बार पक्का मकान बना लेंगे और रोटावेटर भी खरीदना था लेकिन सपने चकनाचूर हो गए।
साहूकार से लिया कर्ज :
नौगांव निवासी नारायण टेलर के 10 बीघा जमीन का गेहूं पानी में खराब हो गया। बैंक का 1 लाख 10 हजार रुपए का कर्ज जमा करने की आखिरी तारीख 28 मार्च थी। इसके बाद 13 प्रतिशत का ब्याज जमा कराना पड़ता। इससे बचने के लिए साहूकार से दो रुपया सैकड़े की दर से कर्ज लिया और बैंक का कर्ज चुकाया। टेलर के अनुसार किसानों का इस बार ब्याज माफ हो जाता और मियाद बढ़ जाती तो राहत मिलती। घर की मरम्मत का सपना भी अधूरा रह गया।
तैयारियां धरी रह गईं :
डेलनपुर के भगवानसिंह राठौर और उनके भाई विजय सिंह 10 बीघा जमीन में खेती करते हैं। गेहूं, चना और लहुसन का उत्पादन साल गुजारे लायक भी नहीं हुआ। 12 सदस्यों के परिवार में इस बार विजय की बेटी लक्ष्मीकुंवर की शादी की तैयारियां चल रही थीं लेकिन सब धरी रह गईं। भगवानसिंह ने बताया बैंक का 1 लाख 70 हजार रुपए का कर्ज है। इसलिए लक्ष्मी की शादी टाल दी। इस बार मकान की मरम्मत भी नहीं हो सकेगी। मजदूरी कर परिवार चलाना होगा। प्रशासन से किसी तरह की मदद की उम्मीद ही नहीं बची।
और भी हैं सताए हुए-
ये चार लोगों की परेशानी बानगी मात्र है। इनसे भी ज्यादा परेशान किसान घरों में आंसू बहा रहे हैं। किसी के घर में बीमारी है तो इलाज के रास्ते नहीं सूझ रहे तो किसी को घर की छत बनाने की चिंता सता रही है। शहनाइयों की गूंज टल गई है और जीवन का आनंद रूठ गया है। गांवों की चौपालों पर दर्द की दास्तां के सिवाए कोई चर्चा नहीं हो रही। गांवों में चारपहिया वाहन से लोग पहुंचते हैं तो सरकारी मदद की उम्मीद जागती है लेकिन वह थोड़ी देर में ओझल हो जाती है।
यह दर्द सता रहा है अन्नदाता को
पहले कम बारिश से पूरी जमीन में बोवनी नहीं हो सकी।
सिंचाई के लिए पानी नहीं मिला।
सर्दी और पाले से नुकसान हुआ।
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से फसलें तबाह।
अनाज का दाना कमजोर, रंग फीका इसलिए दाम नहीं मिल रहे।
कई गांवों में सर्वे ही नहीं हुआ।
कई गांवों में 25 प्रतिशत से कम नुकसान दर्शाया।
बैंक कर्ज जमा करने में राहत नहीं दी गई।
कर्ज चुकाने के समय मंडियां बंद कर दीं।
गेहूं पर मिलने वाला बोनस भी नहीं मिला।
समर्थन केंद्रों पर खरीदी में अड़चन।
कैसे करेंगे हाथ पीले :
मथुरी के मुन्नालाल राठौर के पास 5 बीघा जमीन है। पहले पानी की कमी फिर बेमौसम बारिश से फसल बर्बाद हो गई। गुजारे का ठिकाना नहीं रहा। बैंक का 78 हजार का कर्ज है। 19 वर्षीय बेटी सपना की शादी करनी थी लेकिन कुदरत के कहर ने हाथ पीले होने से रोक दिए। 7 सदस्यों के परिवार को चलाने लिए खुद मजदूरी कर रहे हैं। 10वीं में पढ़ रहे बेटे प्रदीप को किराने की दुकान पर लगा दिया है। प्रशासन ने नुकसान का सर्वे तक नहीं किया। दो साल पहले भी फसल बर्बाद हुई थी। सर्वे हुआ था लेकिन मुआवजा नहीं मिला।