मनुष्य को जन्म मिला, शरीर मिला और लालन पालन मिला। ये सब योग के लक्षण है। पढ़ाई लिखाई की, पैसा कमाया, प्रतिष्ठा और पहचान बनाई ये प्रयासों का फल है। योग और प्रयासों से मिली जीवन की इन्हीं सफलताओं को सदमार्ग पर चलने की बजाए अगर कोई दोष और दुर्गणों के कामों से जुड़ता है तो वह अपना जीवन बर्बाद कर रहा है। योग और प्रयासों से मिले अच्छे जीवन को नश्वर मत बनाओ। आपके दुर्गुणों के कारण आज का मजा कल की सजा भी बन सकता है। जीवन में जो मिला है उसका प्रयोग करो दुरुपयोग मत करो।
यह बात लोकेंद्र भवन में चातुर्मास के दौरान मुनिश्री प्रमाणसागरजी महाराज ने कही। उन्होंने योग, प्रयोग, पीड़ा और प्रेरणा से जुड़ी चार बातों के माध्यम से जीवन को सफल बनाने के सूत्र समझाएं। मुनिश्री ने कहा जन्म से लेकर जवानी तक हमने जो पाया है वो एक योग और हमारे प्रयास है। अच्छा शरीर मिला, अच्छे माता-पिता मिले, अच्छा स्वास्थ्य, शिक्षा, बुद्धि, संस्कार धन और संपन्नता मिली है। जीवन में सभी प्लस-प्लस ही जुड़ा है। इसे संभालो और सद्मार्गों पर चलो। योग और संयोग से मिले इस जीवन को नश्वर बनाने से बचाना है तो अपने आसपास देखना सीखो। यह देखने का प्रयास करो कि आज आपके पास सब कुछ है, घर में सुबह उठते हो तो बच्चों का किलकारी आपके कानों में गूंजती है। दूसरी तरफ वो है जो अनाथालयों में जीवन गुजार रहे हैं। आपकी शरीर स्वस्थ है और दूसरी तरफ है वो है जिनका जीवन मनुष्य के रूप में तो हुआ है मगर पशुओं की तरह जीवन गुजार रहे हैं। आज हमने जो पाया है वो योग है। इस योग का उपयोग सद्कार्यों के लिए करो। अपनी आत्मा को पहचानने का प्रयास करो। धर्म और परमार्थ के कार्यों से समय रहते जुड़ जाओ। खुद में अच्छे संस्कार विकसित करो और आने वाली पीढ़ियां भी अच्छे संस्कारों को अंगीकार करे ऐसे प्रयास करो।
जीवन में सदकार्यों के लिए प्रयोग करते रहना चाहिए
जीवन में जो मिला है उसका प्रयोग करो दुरुपयोग मत करो ने कहा योग से मिले जीवन में सद्कार्यों के लिए प्रयोग करते रहना चाहिए। जीवन में कुछ भी गलत करने से बचों। जीवन को सीमित दायरे में रखो। अपने आपको पहचानों, आत्मा को जानो और आत्मा की ही मानो। हर व्यक्ति को अपने जीवन के आसपास एक लक्ष्मण रेखा खींचना चाहिए और संकल्प लेना चाहिए कि में इसे पार नही करूंगा। मैं ऐसा कोई कर्म नहीं करूंगा जिससे परिवार, कुल, समाज, धर्म की भावना को ठेस पहुंचे। आज मर्यादाएं तेजी से टूट रही हैं।