भगवान शिव का अपनी पत्नी पार्वती से प्रेम इतना प्रगाढ़ है जो कोई भी नहीं तोड़ सकता, लेकिन जैसे आम मनुष्यो में होता है। ऐसे ही कभी- कभी शिव और पार्वती भी रुठते मनाते है। एक बार भगवान इतने इतना गुस्सा आ गया कि उन्होंने मां पार्वती को श्राप दे डाला।
पार्वती हमेशा की महादेव से कभी वेदो तो कभी अमरत्व की युक्ति जन्म मरण के बंधनो पर सवाल किया करती और उनका वृतांत पूछती रहती थी, लेकिन जब भोले उन्हें कहने लगते तो पार्वती को नींद आ जाया करती थी ऐसे ही एक दिन शिव का स्वाभाव थोड़ा उखड़ा था और पार्वती ने जिद की। जिद के आगे महादेव ने गुस्से में आके वेदो के बारे में बताना शुरू किया ही था की पार्वती को नींद आ गई, लेकिन इस बार शिव क्रोध में थे और इस बात पर ही पार्वती को भीलनी बनने का श्राप दे दिया।
शिव उठ कर चले गए और जब उनका क्रोध शांत हुआ तो पार्वती को इधर उधर खोजने लगे लेकिन तब तब श्राप वष पार्वती एक भील के यंहा पुत्री रूप में जन्म ले चुकी थी। शिव का मन विचलित हुआ लेकिन तब नारद जी ने उन्हें समझाया और अपने वैवाहिक जीवन में कुछ नए के लिए ऐसा हुआ है, कह कर दिलासा दिया।
समय बिता पार्वती विवाह योग्य हुई तो शिव के गण नंदी ने एक बड़ी मछली का रूप धरा और जन्हा पार्वती के कबीले के भील शिकार कर मछलिया पकड़ते थे वंहा उत्पात मचाना शुरू कर दिया। पार्वती के पिता भीलो के मुखिया थे इस समस्या के हल से ही उन्होंने पार्वती का स्वयंवर जोड़ दिया।
अर्थात जो उस बड़ी मछली के आतंक से छुटकारा दिलाएगा वो ही पार्वती का पति होगा, तब सदा शिव ने भील का रूप धरा और नंदी रूपी बड़ी मछली को अपने वष में कर भगा दिया. तब फिर से शिव पार्वती का मिलन हुआ और दोनों फिर से कैलाश पर विराज मान हो गए।