शीतला मां का उल्लेख सर्वप्रथम स्कन्दपुराण में मिलता है, इनको अत्यंत सम्मान का स्थान प्राप्त है. इनका स्वरूप अत्यंत शीतल है और रोगों को हरने वाला है. इनका वाहन है गधा, तथा इनके हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते हैं. मुख्य रूप से इनकी उपासना गर्मी के मौसम में की जाती है. इनकी उपासना का मुख्य पर्व “शीतला अष्टमी” है. इस बार शीतला अष्टमी का पर्व 09 मार्च को मनाया जाएगा.
– कलश, सूप , झाड़ू और नीम के पत्ते इनके हाथ में रहते हैं.
-यह सारी चीज़ें साफ़ सफाई और समृद्धि की सूचक है.
-इनको शीतल और बासी खाद्य पदार्थ चढ़ाया जाता है, जिसको बसौड़ा भी कहते हैं.
-इनको चांदी का चौकोर टुकड़ा जिस पर उनका चित्र उकेरा हो, अर्पित करते हैं.
-अधिकांशतः इनकी उपासना बसंत तथा ग्रीष्म में होती है, जब रोगों के संक्रमण की सर्वाधिक संभावनाएँ होती हैं.
-चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, तथा आषाढ़ की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतलाष्टमी के रूप में मनाया जाता है.
– रोगों के संक्रमण से आम व्यक्ति को बचाने के लिए शीतला अष्टमी मनाई जाती है.
– इस दिन आखिरी बार आप बासी भोजन खा सकते हैं, इसके बाद से बासी भोजन का प्रयोग बिलकुल बंद कर देना चाहिए.
– अगर इस दिन के बाद भी बासी भोजन किया जाय तो स्वास्थ्य की समस्याएँ आ सकती हैं.
– यह पर्व गरमी की शुरुआत पर पड़ता है यानी गरमी में आप क्या प्रयोग करें, इस बात की जानकारी आपको मिल सकती है.
– गरमी के मौसम में आपको साफ-सफाई, शीतल जल और एंटीबायोटिक गुणों से युक्त नीम का विशेष प्रयोग करना चाहिए.
बच्चों को बीमारी से बचाने के लिए किस प्रकार माँ शीतला की उपासना करें?
– माँ शीतला को एक चांदी का चौकोर टुकड़ा अर्पित करें
– साथ में उन्हें खीर का भोग लगाएं
– बच्चे के साथ माँ शीतला की पूजा करें
– चांदी का चौकोर टुकड़ा लाल धागे में बच्चे के गले में धारण करवाएं