सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है। भगवान शिव एक लोटे जल से भी शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं इसलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है। दूध, दही बिल्व पत्र आदि अर्पित करके भोलेनाथ की पूजा की जाती है। भगवान शिव के पूजन में बिल्वपत्र का विशेष महत्व है। शिवलिंग पर बिल्वपत्र अर्पित करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। माना जाता है कि शिव की उपासना बिना बिल्वपत्र के पूरी नहीं होती। भगवान शिव को बिल्वपत्र अर्पित करते वक्त और इसे तोड़ते समय कुछ खास नियमों का पालन करना जरूरी होता है। भगवान शिव पर अर्पित करने के लिए बिल्व पत्र तोड़ने से पहले नीचे लिखे मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। उसके बाद बिल्व वृक्ष को प्रणाम करके बिल्व पत्र तोड़ना चाहिए।
अमृतोद्धव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा।
गृहामि तव पत्रणि श्पिूजार्थमादरात्।।
इन तिथियों को न तोड़े बिल्व पत्र
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथियों को, संक्रांति के समय और सोमवार को बिल्व पत्र कभी नहीं तोड़ने चाहिए। बिल्व पत्र भगवान शिव को प्रिय है इसलिए इन तिथियों या वार से पहले तोड़ा गया पत्र चढ़ाना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि अगर नया बिल्वपत्र न मिल सके, तो किसी दूसरे के चढ़ाए हुए बिल्वपत्र को भी धोकर कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है।
शिवलिंग पर इस प्रकार करें बिल्व पत्र अर्पित
भगवान शिव को बिल्वपत्र चिकनी ओर से ही अर्पित करें। बिल्वपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं। ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं। पत्तियां कटी या टूटी हुई न हों और उनमें कोई छेद भी नहीं होना चाहिए। शिव जी को बिल्वपत्र अर्पित करते समय साथ ही में जल की धारा जरूर चढ़ाएं। बिना जल के बिल्वपत्र अर्पित नहीं करना चाहिए।