हम आपको घूमने की जगहों के बारे में तो बताते रहते हैं, इस बार आपको उस जगह ले चलते हैं जहां मान्यता है कि वहां स्नान कर संतान सुख प्राप्त किया जा सकता है। बड़े-बुजुर्ग कहते हैं वो घर ही क्या, जहां बच्चे की किलकारियां ना गूंजती हों। मगर कई ऐसे लोग हैं जो शादी के सालों बाद भी संतान सुख से वंचित हैं। ऐसे लोगों को जरूर इस ‘चमत्कारी’ कुंड में स्नान करने जाना चाहिए, जहां स्नान करने से घर में किलकारियां गूंजने लगती हैं। ऐसी प्राचीन मान्यता है और कहते हैं इस कुंड को खुद कृष्ण और राधा ने बनवाया था।
जी हां, और अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि हम यहां मथुरा की बात कर रहे हैं जिसे भगवान कृष्ण का ही एक रूप माना जाता है। यह पूरा शहर ही उनकी भक्ति और कृपा से भरा हुआ है और यहीं गोवर्धन गिरिधारी की परिक्रमा मार्ग में एक चमत्कारी कुंड पड़ता है राधा कुंड जिसके बारे में मान्यता है कि अगर नि:संतान दंपति अहोई अष्टमी (कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी) की मध्य रात्रि को यहां एक साथ स्नान करें तो उनके घर बच्चे की किलकारी गूंज सकती है। ऐसा कहा जाता है की यहां महिलाएं अपने केश खोलकर राधा जी से संतान का वरदान मांगती हैं। यहां स्नान करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं।
ये कथा है प्रचलित
कुंड से संबंधित एक कथा के अनुसार कंस ने भगवान श्रीकृष्ण का वध करने के लिए अरिष्टासुर नामक दैत्य को भेजा था। अरिष्टासुर बछड़े का रुप लेकर श्रीकृष्ण की गायों में शामिल हो गया अौर ग्वालों को मारने लगा था। भगवान श्रीकृष्ण ने बछड़े के रुप में छिपे दैत्य को पहचान लिया। श्रीकृष्ण ने उसको पकड़कर जमी पर पटक पटककर उसका वध कर दिया। यह देखकर राधा ने श्रीकृष्ण से कहा कि उन्हें गौ हत्या का पाप लग गया है। इस पाप से मुक्ति हेतु उन्हें सभी तीर्थों के दर्शन करने चाहिए।
राधा की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने देवर्षि नारद से इसका उपाय पूछा। देवर्षि नारद ने उन्हें उपाय बताया कि वह सभी तीर्थों का आह्वान करके उन्हें जल रूप में बुलाएं और उन तीर्थों के जल को एकसाथ मिलाकर स्नान करें, जिससे उन्हें गौ हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी। देवर्षि के कहने पर श्रीकृष्ण ने एक कुंड में सभी तीर्थों के जल को आमंत्रित किया और कुंड में स्नान करके पापमुक्त हो गए। उस कुंड को कृष्ण कुंड कहा जाता है, जिसमें स्नान करके श्रीकृष्ण गौहत्या के पाप से मुक्त हुए थे।
माना जाता है कि इस कुंड का निर्माण श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से किया था। देवर्षि नारद के कहने पर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक छोटा सा कुंड खोदा अौर सभी तीर्थों के जल से उस कुंड में आने की प्रार्नाथ की। श्रीकृष्ण के आवाह्न पर सभी तीर्थ वहां जल रुप में आ गए। माना जाता है कि तभी से सभी तीर्थों का अंश जल रूप में यहां है।
श्रीकृष्ण द्वारा बने कुंड को देख राधा ने भी उस कुंड के पास ही अपने कंगन से एक अौर छोटा सा कुंड खोदा। भगवान श्रीकृष्ण ने जब उस कुंड को देखा तो उन्होंने प्रतिदिन उसमें स्नान करने व उनके द्वारा बनाए कुंड से भी अधिक प्रसिद्ध होने का वरदान दिया। देवी राधा द्वारा बनाए कुंड राधा कुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
माना जाता है कि अहोई अष्टमी तिथि को इन कुंडों का निर्माण हुआ था, जिसके कारण अहोई अष्टमी को यहां स्नान करने का विशेष महत्व है। प्रति वर्ष यहां बड़ी संख्या में भक्त स्नान हेतु आते हैं। कृष्ण कुंड और राधा कुंड की अपनी एक विशेषता है कि दूर से देखने पर कृष्ण कुंड का जल काला और राधा कुंड का जल सफेद दिखाई देता है जो कि श्रीकृष्ण के काले वर्ण के होने का और देवी राधा के सफेद वर्ण के होने का प्रतीक है।